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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/395 प्रेक्षाध्यानः आसन-प्राणायाम यह कृति हिन्दी गद्य में हैं।' इसके लेखक मुनि किशनलालजी है। पूज्य मुनि श्री ने आसन-प्राणायाम-मुद्रा-लेश्या आदि से सम्बन्धित कई पुस्तकें लिखी हैं। ___ आसन और प्राणायाम के स्वरूप एवं उसकी विधि की चर्चा करने से पहले यह जानना आवश्यक प्रतीत होता है कि वस्तुतः इन क्रियाओं का सम्बन्ध किससे हैं? ये क्रियाएँ क्या हैं? इत्यादि। यह सर्वविदित है कि भारतीय विद्याओं में योग का अपना एक विशिष्ट स्थान रहा है, जो एक ओर अध्यात्म-साधना से संबंधित है, तो दूसरी ओर मानसिक एवं शारीरिक विकास में भी इसका मूल्यवान योगदान है। ___ योग साधना के नानाविध आयामों में आसन-प्राणायाम भी एक मुख्य आयाम है, जिसकी प्रक्रिया गृहमुक्त एवं गृही सभी साधकों के लिए लाभदायक है। इन क्रियाओं (आसन-प्राणायाम) का प्रयोग करने से बाह्य व्यक्तित्व बदलने लगता है। भयभीत निर्भय बनता है। अस्वस्थ स्वस्थ बनता है। स्वस्थ व्यक्ति अपनी शक्ति का समुचित उपयोग करने लगता है। उससे अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों एवं भावों में रूपांतरण घटित होने लगता है। आसन विजय और श्वास संयम दोनों ही जीवन के आधारभूत तत्त्व हैं। प्राणायाम का संबंध हमारे श्वास से हैं। श्वास हमारे जीवन को निरन्तर बदलता रहता है। प्राणायाम के द्वारा श्वास को बदलने का प्रयत्न किया जाता है। यह बहुत बड़ी सच्चाई हैं कि जब तक श्वास की गतिविधि को नहीं बदला जाता तब तक साधना में विकास नहीं किया जा सकता। स्वस्थ-शरीर, निर्दोष विचार और पावन कर्म के लिए आसन और प्राणायाम सशक्त माध्यम है। प्रस्तुत कृति में आसन और प्राणायाम के प्रकार एवं उनके भेद-प्रभेदादि का वर्णन तो उपलब्ध है ही, किन्तु आसन का स्वरूप, आसन के उद्देश्य, आसन और स्वास्थ्य, प्राणायाम के परिणाम, प्राण का वैज्ञानिक आधार, प्राण प्रयोग की प्रक्रिया आदि का भी सम्यक् निरूपण किया गया है। आसन- इसमें लिखा हैं कि आसन केवल शारीरिक प्रक्रिया मात्र नहीं है, उसमें आध्यात्म निर्माण के बीज छिपे हैं। आसन अध्यात्म प्रवेश का प्रथम द्वार है। आसन शब्द के अनेक अर्थ हैं। हठयोग में आसनों के असंख्य प्रकार बताये गये हैं। सामान्यतया जीव योनियों की अपेक्षा आसनों की संख्या चौरासी लाख हैं। इनमें से चौरासी आसनों की प्रधानता रही हुई है। ' प्रेक्षाध्यान आसन- प्राणायाम, मुनिकिशनलाल, जैन विश्व भारती लाडनूं- ३४१३०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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