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394 / योग - मुद्रा - ध्यान सम्बन्धी साहित्य
शिथिल हो, उस स्थिति में पीले रंग का ध्यान करें। दस मिनट तक आँखे बन्द कर चाक्षुष केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान करें अथवा आनन्द केन्द्र पर सुनहले रंग का ध्यान करें। ऐसा लगेगा, समस्या बिना सुलझाएँ सुलझ रही है, समाधान स्वतः कहीं से उतर कर सामने आ गया है।
२. रंगों को देखने की विधि - लेश्या ध्यान रंगों का ध्यान है। इसमें हम निश्चित रंग को निश्चित चैतन्य केन्द्र पर देखने का प्रयत्न करते हैं। लेश्याध्यानी को रंगों के दो भेद करने होंगे चमकते हुए यानी प्रकाश के रंग और अंध यानी अंधकार के रंग। हमें ध्यान में जिन रंगों को देखना है, वे प्रकाश के रंग होने चाहिए | अन्तिम की तीन लेश्याओं के रंग प्रकाश के रंग है। रंग का साक्षात्कार करने के लिए चित्त की स्थिरता या एकाग्रता अनिवार्य है।
३. स्वतः सूचन (Auto suggestion) और भावना लेश्या - ध्यान विधि का अर्थ है- विभिन्न रंगों में होने वाले विभिन्न परिणामों और परिवर्तन का अनुभव करना । वस्तुतः ध्यान के परिणाम को प्रभावी बनाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है - स्वतः सूचन या ओटोसजेशन । पाश्चात्य देशों में एक चिकित्सा प्रणाली का विकास हो रहा है - जिसे 'आटोजेनिक' चिकित्सा पद्धति कहते हैं। इस पद्धति में स्वतः प्रभाव डालने वाली बात होती है। व्यक्ति कल्पना करता है और कल्पना के सहारे वैसा अनुभव कर लेता है। इस कृति में इस प्रसंग को सोदाहरण समझाया गया है।
४. लेश्या - ध्यान का प्रयोग - आसन- लेश्या - ध्यान करते समय आसन कैसा होना चाहिए? इस सम्बन्ध में मुख्यतया तीन पद्धतियों के आसन कहे गये हैं खड़े-खड़े ध्यान करने योग्य आसन, बैठे-बैठे ध्यान करने योग्य आसन और लेटे-लेटे ध्यान करने योग्य आसन । सामान्यता इस ध्यान के प्रयोग में आँखे कोमलता से बंद हों, शरीर सीधा रहें, रीढ़ की हड्डी और गर्दन सीधी रहें तथा शरीर में अकड़पन न हों । मुद्रा ध्यान के समय हाथ और अंगुलियों की मुद्रा को दो प्रकार से रख सकते हैं १. दोनों हथेलियाँ को दोनों घुटनों पर रखना, २. अथवा दोनों हथेलियों को गोद में रखना इस सन्दर्भ में और भी चर्चा की गई है।
५. ध्यान विधि - इसमें तीन चरण कहे गये हैं - १. कायोत्सर्ग विधि, २ . अन्तर्यात्रा विधि, ३. लेश्या - ध्यान विधि
निष्कर्षतः इस कृति में लेश्या - ध्यान विधि का सम्यक् और सुन्दर निरूपण दृष्टिगत होता है। इसमें लेश्या ध्यान की ये निष्पत्तियाँ कही हैं - लेश्या का ध्यान करने से चित्त की प्रसन्नता बढ़ती है, धार्मिकता के लक्षणों का प्रकटीकरण होता है, संकल्प शक्ति का जागरण होता है और मानसिक दुर्बलता समाप्त होती है आत्म साक्षात्कार होता है।
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