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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/383
अध्याय ६ योग-मुद्रा-ध्यानसम्बन्धी विधि-विधानपरक साहित्य
झाणज्झयण अथवा झाणसय
इस कृति का संस्कृत नाम ध्यानाध्ययन और ध्यानशतक है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने इसे ध्यानशतक नाम से निर्दिष्ट किया है। इस कृति' के कर्ता और कृति का काल दोनों विवादस्पद हैं। 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' (भा.४) में इस पर कुछ विचार किया गया है। परम्परा से इसके कर्ता जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण माने जाते हैं- जिनका काल विक्रम की छठी शती माना गया है। इसकी मुद्रित प्रतियों में १०५ गाथाएँ हैं। इसकी आद्य गाथा में भगवान महावीर स्वामी को प्रणाम किया गया है और उन्हें योगीश्वर कहा है।
इसका मुख्य विषय ध्यान साधना का निरूपण करना है। इस उद्देश्य से दूसरी गाथा में ध्यान का लक्षण बतलाया गया है। इसके अतिरिक्त छयस्थ के ध्यान का समय, केवलज्ञानियों की ध्यान की स्थिति, ध्यान के चार प्रकार और उनके फल, आर्तध्यान के चार भेदों का स्वरूप, रौद्रध्यान के चार भेदों का स्वरूप, धर्मध्यान और शुक्लध्यान के अधिकारी, उनकी लेश्या एवं लिंग, ध्यान साधना सम्बन्धी देश, काल, आसन और आलम्बन, केवलज्ञानियों द्वारा की जाने वाली योग-निरोध की विधि तथा धर्मध्यान और शुक्लध्यान के फल इत्यादि विषय निरूपित हुए हैं। टीका - इस पर हरिभद्रसूरि ने एक टीका रची है उसमें सर्वप्रथम ध्यान के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी हैं। इस पर एक अन्य अज्ञातकर्तृक टीकाएँ भी है। तत्त्वानुशासन
नागसेनाचार्य प्रणीत यह कृति संस्कृत भाषा में निबद्ध है। हमें यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है, केवल नमस्कार स्वाध्याय नामक संकलित कृति में, 'नवकार- ध्यानविधि के रूप में इसकी १६३ गाथाएँ उपलब्ध हुई हैं। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह ध्यान का अद्भुत ग्रन्थ है। इस कृति का अवलोकन करने से प्रतीत होता है कि ध्यान के अभ्यासियों को यह ग्रन्थ
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' यह कृति आवस्सयनिज्जत्ति और हरिभद्रीय शिष्यहिता नाम की टीका के साथ 'आगमोदयसमिति' से प्रकाशित है। इस टीका की एक स्वतंत्र हस्तप्रति भी मिलती है।
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