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366 / प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
प्रायश्चित्त का विधान ४३. भिन्न मास आदि प्रायश्चित्त देने की विधि ४४. उद्घात और अनुद्घात की प्रायश्चित्त - विधि ४५. आत्मतर तथा परतर को प्रायश्चित्त देने की विधि ४६. अन्यतर को प्रायश्चित्त देने की विधि ४७. प्रशस्त द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में आलोचना करने का विधान ४८. अभिशय्या' में जाने की आपवादिक विधि ४६. आवश्यक को पूर्णकर या न कर अभिशय्या में जाने का विधान ५०. साधुओं की निस्तारण - विधि साध्वियों की निस्तारण-विधि ५२. दुर्लभ - भक्त की निस्तारण विधि ५३. परिहारतप का निक्षेपण कब? कैसे?
५१.
इस प्रकार इस प्रथम उद्देशक में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की अपेक्षा से विविध प्रकार के प्रायश्चित्तों का विधान किया गया है। साधुओं के विहार की चर्चा की गई है।
द्वितीय उद्देशक - इस उद्देशक में भाष्यकार ने निम्न विधानों को चर्चित किया है१. प्रतिमा प्रतिपत्ति की विधि और उसके बिन्दु २. आचार्य आदि की प्रतिमा प्रतिपत्ति विधि ३. प्रतिमा की समाप्ति - विधि और प्रतिमा प्रतिपन्न का सत्कार पूर्वक गण में प्रवेश ४. आचार्य द्वारा निषेध करने पर प्रतिमा स्वीकार करने का परिणाम और उसके लिए प्रायश्चित्त का विधान ५. देवताकृत अन्य उपद्रवों में पलायन करने पर प्रायश्चित्त का विधान ६. देवीकृत माया में मोहित श्रमण को प्रायश्चित्त का विधान ७. अन्यान्य प्रायश्चित्तों का विधान ८. विविध प्रायश्चित्तों का विधान ६. निंदा और खिंसना के लिए प्रायश्चित्त विधान १०. पार्श्वस्थ का स्वरूप एवं उसके प्रायश्चित्त की विधि ११. उत्सव के बिना अथवा उत्सव में शय्यातरपिंड ग्रहण की प्रायश्चित्त विधि १२. पार्श्वस्थ के संसर्ग के प्रायश्चित्तों का विधान १३. पार्श्वस्थ तथा यथाछंद की प्रायश्चित्त विधि १४. कुशील आदि की प्रायश्चित विधि १५. प्रायश्चित्त दान की भिन्न-भिन्न विधियों का संकेत । ६. एकाकी ग्लान के मरने पर होने वाले दोष तथा उनका प्रायश्चित्त विधान १७. दो साधर्मिकों की परस्पर प्रायश्चित्त विधि १८. प्रायश्चित्त वहन न कर सकने वाले मुनि की चर्या विधि १६. समर्थ होने पर सेवा लेने से प्रायश्चित्त दान | २०. क्षिप्तचित्त मुनि के स्वस्थ होने पर प्रायश्चित्त की विधि २१. गृहस्थ से कलह कर आये हुए साधु के लिए क्षमायाचना करने का विधान २२. इत्वरिक और यावत्कथिक तप का प्रायश्चित्त विधान २३. गृहीभूत करके उपस्थापना देने का निर्देश एवं गृहीभूत करने की विधि २४. गृहीभूत करने की आपवादिक विधि
१ अभिशय्या- जहाँ दिन में अथवा रात्रि में वहीं रहकर प्रातः वसति में आते हैं, उसे अभिशय्या कहते हैं।
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