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________________ 364/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य पांचवीं-छठी शताब्दी होना चाहिए। स्पष्टतः भाष्य ग्रन्थों का रचनाकार चौथी से छठी शताब्दी तक ही होना चाहिए। हम व्यवहार सूत्र के सम्बन्ध में यह कह आये हैं कि यह प्रमुख रूप से विधि-विधान का प्रतिपादक ग्रन्थ है। उसमें भी विशेष रूप से यह प्रायश्चित्त निर्धारक ग्रन्थ है तथा आलोचना, प्रायश्चित्त गण मृत्यु, उपाश्रय, उपकरण, प्रतिमाएँ आदि विषयों पर विशेष प्रकाश डालता है। तथापि इसमें प्रसंगवश समाज, अर्थशास्त्र, राजनीति, मनोविज्ञान, आदि अनेक विषयों का विवेचन मिलता है। भाष्यकार ने व्यवहार के प्रत्येक सूत्र की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। यहाँ व्यवहारभाष्य के परिचय में उन्हीं विषयों की ओर ध्यान दिया जायेगा, जो हमारी शोध का मुख्य ध्येय है - पीठिका - व्यवहार भाष्यकार ने अपने भाष्य के प्रारम्भ में पीठिका दी है। पीठिका में सर्वप्रथम व्यवहार, व्यवहारी और व्यवहर्त्तव्य का निक्षेप पद्धति से स्वरूप वर्णन किया गया है। जो स्वयं व्यवहार का ज्ञाता है वह गीतार्थ है। अगीतार्थ के साथ पुरुष को व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योंकि यथोचित व्यवहार करने पर भी यह समझेगा कि मेरे साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया। अतः गीतार्थ के साथ ही व्यवहार करना चाहिए।' व्यवहार आदि में दोषों की सम्भावना रहती है, अतः उनके लिए प्रायश्चित्तों का भी विधान किया जाता है। इसी तथ्य को दृष्टि में रखते हुए भाष्यकार ने प्रायश्चित्त का अर्थ, भेद, निमित्त, अध्ययन विशेष आदि दृष्टियों से विवेचन किया है। प्रस्तुत भाष्य में प्रायश्चित्त का ठीक वही अर्थ किया गया है जो जीतकल्प भाष्य में उपलब्ध है। प्रतिसेवना, संयोजना आरोपणा और परिकुंचना- इन चारों के लिए चार प्रकार के प्रायश्चित्त बताये गये हैं। प्रथम उद्देशक - पीठिका की समाप्ति के बाद आचार्य सूत्र-स्पर्शिक नियुक्ति का व्याख्यान प्रारम्भ करते हैं इसमें कई प्रकार के विषयों का प्रतिपादन किया गया है। उनमें विधि-विधान से सम्बन्धित निम्न विवरण उपलब्ध होता है - १. अतिक्रम आदि के लिए प्रायश्चित्त का विधान, २. प्रतिसेवना प्रायश्चित्त के ' व्यवहारभाष्य गा. २७ २ वही गा. ३४ तकल्प भाष्य गा.५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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