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________________ 362/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य विधि, १२. भूतार्थ जानने की अनेक विधियाँ का उल्लेख, १३. गणधारण के योग्य की परीक्षा विधि, १४. एक ही क्षेत्र में समाप्तकल्प और असमाप्तकल्प के रहने की विधि, १५. मंडली विधि से अध्ययन का उपक्रम, १६. घोटक-कंडूयित विधि से सूत्रार्थ का ग्रहण, १७. सापेक्ष आचार्य द्वारा अन्य आचार्य की स्थापना विधि, १८. आचार्य के कालगत होने पर अन्य को गणधर बनाने की विधि, १६. माया से योग विसर्जन करने की विधि, २०. साधारण क्षेत्र से निर्गमन की विधि, २१. आलोचना स्वपक्ष में करने का निर्देश, इसका अतिक्रमण करने से होने वाली हानियाँ तथा प्रायश्चित्त विधि, २२. आचार्य के चरण-प्रमार्जन की विधि, २३. बहुश्रुत को भी एकाकी रहने का निषेध तथा उसकी प्रायश्चित्त विधि, २४. एक या अनेक साधु के दिवंगत होने पर परिष्ठापन विधि, २५. सात के कम मुनि दिवंगत होने पर परिष्ठापन की विधि, २६. शव-परिष्ठापन की विशेष विधि एवं उसके न करने पर प्रायश्चित्त विधान, २७. वर्षाकाल में फलक न ग्रहण करने पर प्रायश्चित्त विधान, २८. प्रातिहारिक और सागारिक शय्या-संस्तारक को बाहर ले जाने की विधि, २६. विस्मृत उपधि को लाने की विधि, ३०. मोक प्रतिमा की विधि, ३१. महती मोक प्रतिमा की विधि ३२. वर्षावास के योग्य क्षेत्र की प्रतिलेखन विधि, ३३. आगम व्यवहारी द्वारा आगम के आधार पर प्रायश्चित्त प्रदान आदि के उल्लेख हैं।। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि व्यवहारनियुक्ति व्यवहारभाष्य के समतुल्य ही है। विशेष इतना है कि नियुक्ति संक्षिप्त होती है जबकि भाष्य अपेक्षाकृत विस्तृत होते हैं। व्यवहारचूर्णि व्यवहारसूत्र पर चार प्रकार का व्याख्या साहित्य मिलता हैं - १. नियुक्ति, २. भाष्य, ३. चूर्णि और ४. टीका। व्यवहारसूत्र की चूर्णि अभी तक अप्रकाशित है। व्यवहारभाष्य आगमों के व्याख्या ग्रन्थों में भाष्य का दूसरा स्थान है। व्यवहारभाष्य की गाथा ४६६३ में भाष्यकार ने अपनी व्याख्या को भाष्य नाम से संबोधित किया है। नियुक्ति की रचना अत्यन्त संक्षिप्त शैली में होती है। उसमें केवल पारिभाषिक शब्दों पर ही विवेचन या चर्चा मिलती है। किन्तु भाष्य में मूल आगम तथा नियुक्ति दोनों की विस्तृत व्याख्या की जाती है। वैदिक परम्परा में भाष्य लगभग गद्य में लिखे गये हैं, लेकिन जैन परम्परा में भाष्य प्रायः पद्यबद्ध मिलते हैं। जिस प्रकार नियुक्ति के रूप में मुख्यतः १० नियुक्तियों के नाम मिलते हैं वैसे ही भाष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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