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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/329 सन आदि का धागा वशीकरण के लिए बटना, घर के सामने लघुनीति-बडीनीति परठना, सार्वजनिक स्थान, कीचड़ फूलन युक्तस्थान, इक्षुवन आदि उद्याग में मल-मूत्र फेंकना इत्यादि। चौथा उद्देशक- इस उद्देशक में भी मासलघु प्रायश्चित्त से सम्बन्धित क्रियाओं पर प्रकाश डाला गया है। इसमें लिखा है कि जो साधु राजा को वश में करता है, राजा की पूजा करता है, राजरक्षक, नगरक्षक, निगमरक्षक, सर्वरक्षक को अपने वश में करता है उनकी अर्चा पूजा करता है, आचार्य उपाध्याय को बिना दिये आहार करता है, बिना गवेषणा के आहार करता है, निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी के उपाश्रय में बिना किसी संकेत किये प्रवेश करता है, परस्पर हँसी मजाक करता है, नया क्लेश उत्पन्न करता है, क्षमा मांगने देने के बाद पुनः क्लेश करता है, मुँह फाड़-फाड़कर हँसता है, पार्श्वस्थ (शिथिलाचारी) के साथ सम्बन्ध रखता है, गीले हाथ, बर्तन, चम्मच आदि से आहारादि ग्रहण करता है, स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना नहीं करता है, अविधिपूर्वक लघुनीति- बड़ीनीति का त्याग करता है उसके लिए लघुमासिक (मासलघु) प्रायश्चित का विधान है। पाँचवां उद्देशक- पाँचवा उद्देशक भी मासलघु प्रायश्चित्त से सम्बन्धित हैं। इसमें उल्लेख हैं कि जो साधु-साध्वी सचित्त वृक्ष के मूल पर कायोत्सर्ग करें, बैठे, खड़े रहे, अशनादि चारों प्रकार का आहार करें, स्वाध्याय करें, अपनी चादर गृहस्थ से सिलावे, चादर मर्यादा से अधिक लंबी बनावे, प्रातिहारिक पादपोंछन को उसी दिन वापिस न लौटावे, सचित्त लकड़ी का दण्ड आदि बनावे मुख का वीणा जैसा बनावे, पत्र, फूल, फल आदि की वीणा बनावे, इन वीणाओं को बजावे, अन्य प्रकार के शब्दों की नकल करे सामाचारी विरुद्ध आचार वाले साधु साध्वी के साथ आहार-विहार करें, परिमाण से अधिक लंबा रजोहरण रखे, बहुत छोटा एवं पतला रजोहरण रखे, रजोहरण को अपने से बहुत दूर रखें, रजोहरण पर बैठे, रजोहरण को सिर के नीचे रखे उसके लिए मासलघु प्रायश्चित्त का विधान है। छठा उद्देशक- इस उद्देशक में मैथुन सम्बन्धी क्रियाओं के लिए गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का विधान बतलाया गया है। वे क्रियाएँ निम्न हैं - स्त्री से मैथुन सेवन के लिए प्रार्थना करना, मैथुन की कामना से हस्तकर्म करना, स्त्री की योनि में लकड़ी आदि डालना, अपने लिंग का परिमर्दन करना, अपने अंगादान की तेल आदि से मालिश करना, निर्लज्ज वचन बोलना, क्लेश करना, वसति छोड़कर अन्यत्र जाना, विषय भोग के लेख करना, वसति छोड़कर अन्यत्र जाना, विषयभोग के लेख लिखना-लिखवाना, लेख लिखने-लिखवाने की इच्छा से बाहर जाना इत्यादि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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