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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/311 लगने वाले दोषों के लिए उभय (आलोचना और प्रतिक्रमण) प्रायश्चित्त का विधान ४. विवेकयोग्य - जिस आहार को ग्रहण करने का समय बीत चुका हो ऐसा कालातीत आहार ग्रहण करना, अविधि पूर्वक उपधि, शय्या आदि ग्रहण करना। इत्यादि से लगने वाले दोषों के निवारणार्थ विवेक प्रायश्चित्त का विधान है। ५. व्युत्सर्गयोग्य - गमन, आगमन, विहार, श्रुत, सावद्य स्वप्न, नाव-नदी-सन्तार आदि से सम्बन्धित लगने वाले दोषों की शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त का विधान है। विभिन्न व्युत्सों (कायोत्सर्ग) के लिए विभिन्न उच्छवासों का परिमाण बताया गया है। ६. तपयोग्य - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार इन पाँच आचारों में लगने वाले दोषों की शुद्धि के लिए तप प्रायश्चित्त का विधान बताया है इसमें विभिन्न प्रकार के दोषों (अपराधों) की अपेक्षा से एकाशन, आयंबिल, निवि, उपवास, षष्ठभक्त, (बेला), अष्टमभक्त (तेला) आदि छः प्रकार के तप दान का उल्लेख हुआ है। इसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से भी तपोदान का विचार किया गया है। इतना ही नहीं गीतार्थ, अगीतार्थ, सहनशील, असहनशील, शठ, अशठ, परिणामी, अपरिणामी, अतिपरिणामी, घृति-देह सम्पन्न, घृति-देहहीन, आत्मतर, परतर, उभयतर, नोभयतर, अन्यतर, कल्पस्थित, अकल्पस्थित आदि पुरुषों की दृष्टि से भी तप प्रायश्चित्त दान का व्याख्यान किया गया है।" ७. छेदयोग्य - जो तप के गर्व से उन्मत्त है अथवा जो तप के लिए सर्वथा असमर्थ है अथवा जिसकी तप पर तनिक भी श्रद्धा नहीं है अथवा जिसका तप से दमन करना कठिन है उसके लिए छेद प्रायश्चित्त का विधान है।' छेद का अर्थ है- दीक्षावस्था की काल गणना को न्यून करना अर्थात् दीक्षापर्याय में कमी (छेद) कर देना, दीक्षापर्याय का छेद करना। 'जीतकल्पसूत्र - १३-१५ २ वही. १८ ३ वही. १६-२० ४ वही. २३-७६ ५ वही. ८०-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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