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________________ अध्याय ८ प्रायश्चित्त सम्बन्धी विधि- विधानपरक साहित्य आलोचनादानटिप्पण इसके कर्त्ता भुवनरत्नगणि है । यह आलोचना ग्रहण करने सम्बन्धी प्रवेश पत्र पुस्तिका है। एक निर्धारित लघुपुस्तक में आलोचना दान को लिखना टिप्पण कहलाता है। ' आलोचनातपोदानटिप्पन यह कृति अनुपलब्ध है। इसके बारे में पूर्ववत् ही जानना चाहिए । आलोचनाप्रायश्चित्तविधि इसके कर्त्ता खरतरगच्छ के गणिप्रवर क्षेमकल्याण है। इसमें आलोचना दान एवं प्रायश्चित्त ग्रहण दोनों प्रकार की विधि का प्रतिपादन हुआ है। आलोचना रत्नाकर इसके रचनाकार मुनि विजयगणि है । यह कृति आलोचनादाता एवं आलोचक के लिए समुद्र के समान अथाह रहस्य को प्रगट करने वाली है। आलोचनाविचार जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 307 २ यह कृति संस्कृत में है। इसकी विशेष जानकारी का अभाव है। आलोचनाविधि - यह प्रत अहमदाबाद के देला उपाश्रय भंडार में है । आलोचनाविधि इसके रचयिता क्षमाकल्याणगणि है। इसका अपर नाम आलोचना- प्रायश्चित्त विधि है। , आलोचनाविधान - यह रचना अज्ञातकर्तृक है । आलोचनाविधान - इसके कर्त्ता मुनि यशोभद्र के शिष्य पृथ्वीचन्द्रसूरि है । ये सभी कृतियाँ आलोचनादान विधि या आलोचनाग्रहण विधि का विवेचन करती हैं यह बात कृति के नाम से ही स्पष्ट हो जाती है । जिनरत्नकोश पृ. ३४ २ वही पृ. ३४ ३ - वही पृ. ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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