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________________ 286/समाधिमरण सम्बन्धी साहित्य प्रस्तुत प्रकीर्णक का आरम्भ निष्कलंक श्रमण चारित्र का पालन कर आयु के अन्त में अनशनव्रत ग्रहण करने की विधि से हुआ है। तत्पश्चात् पूर्वोक्त छः प्रकारों का निरूपण इस प्रकार प्रस्तुत है - १. दुष्कृतगर्दा - इस अधिकार में अनशनव्रत ग्रहण करने वाले आराधक द्वारा ज्ञानाचार आदि के आठ प्रकार, महाव्रत के पाँच प्रकार, आहार के चार प्रकार, तप के बारह प्रकार, चारित्राचार के आठ प्रकार, वीर्याचार के तीन प्रकार इत्यादि में लगे हुए दोषों से विरत होने के लिए उनकी तीन करण - तीन योग पूर्वक निन्दा की गई है। २. समस्तजीव क्षमापना - इस अधिकार में दूसरों के प्रति कुवचन बोला हो, उपकारियों के प्रति अपकार किया हों, मित्र-स्वजन आदि एवं चारगति रूप जीवों के दुख में निमित्त बना हों, तो उन सभी से क्षमायाचना करने का कथन किया गया है। ३. शुभभावना - इस अधिकार के प्रसंग में जीवन, यौवन, लक्ष्मी, और प्रिय समागम को तरंग की तरह चंचल बताते हुए व्याधि, जन्म, जरा, मृत्यु से ग्रस्त प्राणियों के लिए जिन कथित धर्म ही एक मात्र शरण है- ऐसा प्ररूपित किया गया ४. चतुःशरणग्रहण - इसमें आराधक के सम्मुख शरीरादि बाह्य वस्तुओं की नश्वरता तथा अशुचित्व का निरूपण किया गया है साथ ही उत्तम शरण रूप जिनधर्म को माता, गुरु को पिता, साधुओं को सहोदर, और साधर्मिकों को बान्धव बताया गया है। ५. पंचपरमेष्ठी नमस्कार- इसमें आराधक द्वारा ऋषभादि तीर्थंकरों एवं भरत-ऐरवत क्षेत्र के तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। पुनः आचार्य, उपाध्याय आदि पंच परमेष्ठी को वन्दना की गई है। ६. अनशनव्रतग्रहण- इसमें अनशनव्रत ग्रहण करने की सामान्य विधि का प्रतिपादन हुआ है। अन्त में भवभीरुओं के लिए उपरोक्त षड्विध आराधना विधि का पालन करने रूप निर्देश दिया गया है। प्राचीनआचार्यकृत आराधनापताका यह कृति' प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें कुल ६३२ गाथायें हैं। यह रचना प्राचीन आचार्य की है ऐसा उल्लेख मिलता है। इसमें समाधिमरण ग्रहण ' पइण्णयसुत्ताई, भा. २, पृ. १८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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