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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/283
आराधना
प्रस्तुत नाम की नौ रचनाएँ मिलती हैं। ये कृतियाँ हमें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं किन्तु जिनरत्नकोश (पृ. ३१-३२) के आधार से जितनी जानकारी प्राप्त हो सकी हैं वह इस प्रकार है - आराधना - यह कृति नयनन्दि की है और अपभ्रंश शैली में लिखी गई है। आराधना - इसके रचना कर्ता नेमिसेन के प्रशिष्य एवं माधवसेन के शिष्य अमितगति है यह रचना संस्कृत में है। आराधना - यह रचना अभयदेवसूरि की है इसमें ८५ गाथाएँ हैं। इसका दूसरा नाम आराधनाकुलक है। आराधना - इसके कर्ता गणधरगच्छीय श्री महेश्वरसूरि जी के शिष्य श्री अजितदेवसूरि जी है। टीका - एक टीका गणधरनन्दि के प्रशिष्य, बालदेव के शिष्य अपराजित ने रची है। यह टीका श्री विजयोदया नाम से प्रसिद्ध है। एक टीका पं. आशाधरजी ने रची है। एक टीका पंजिका नाम से प्रसिद्ध हुई है, यह अज्ञातकर्तृक है। एक टीका मुनि दिलसुख के शिष्य शिवाजी ने लिखी है। एक टीका लगभग नन्दिगणी की है। एक टीका अमितगति की मिलती है जो ‘मरणकरण' के नाम से जानी जाती है। आराधना - यह पर्यन्ताराधना के नाम से बालभाई काकलभाई अहमदाबाद सं. १६६२ में प्रकाशित हो चुकी है। इसकी गणना प्रकीर्णक ग्रन्थों में होती है। इसके कर्ता सोमसूरि है। इसमें ७० गाथाएँ हैं। आराधना - यह रचना खरतरगच्छीय सकलचन्द्र के शिष्य समयसुन्दर की है और वि.सं. १६६७ में लिखी गई है। आराधना - इन कृतियों में अन्तिम आराधना आदि के विधान दिये गये हैं। यह ५५१ श्लोक परिमाण है। इसका काल वि.सं. १५६२ है। यह अज्ञातकर्तृक है। चउसरणपइण्णयं (चतुःशरण-प्रकीर्णक)
चतुःशरण नामक यह कृति' कुशलानुबंधीचतुःशरण एवं चतुःशरण इन दो
'चउसरण पइण्णयं-पइण्णयसुत्ताई, भा. १, पृ. ३०६-३११
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