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258/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
अपना एवं अपने गुरु का नामोल्लेख किया गया है। शेष नौ गाथाओं में श्रावक और साधुओं के अनुष्ठान संबंधी ५० द्वारों का नाम निर्देश किया गया है। उन द्वारों की विषयवस्तु संक्षेप में निम्नलिखित हैं - पहला द्वार जिनमन्दिर के योग्य भूमि का शुभाशुभत्त्व बताता है। दूसरा द्वार- कूर्म प्रतिष्ठा विधि का वर्णन करता है। तीसरे द्वार में जिन भवन की निर्माण विधि बतायी गयी है। चौथे द्वार में जिन प्रतिमा के लक्षण कहे गये हैं। पाँचवा द्वार जिन बिंब की प्रतिष्ठा विधि से सम्बन्धित है। छठे द्वार में मिथ्यात्व का स्वरूप, मिथ्यात्व के भेद, एवं उसके त्याग का उपदेश दिया गया है। आठवें द्वार में वासचूर्ण को अभिमन्त्रित करने की विधि कही गयी है। नवमें द्वार में सम्यक्त्वव्रत आरोपण विधि का निर्देश है। दशवां द्वार उपासक प्रतिमाओं को ग्रहण करने की विधि का प्रतिपादन करता है। ग्यारहवां द्वार उपधान विधि का है। बारहवां द्वार' मालारोपण विधि की चर्चा करता है। तेरहवां द्वार तपग्रहण-व्रतग्रहण-उपधानप्रवेशादि के दिन करने योग्य नन्दी विधि का विवेचन करता है। चौदहवें द्वार में देशविरतिव्रत (परिग्रहपरिणामव्रत) ग्रहण करने की विधि प्रतिपादित है। पन्द्रहवें द्वार में प्रव्रज्याविधि का वर्णन है। सोलहवाँ द्वार विहार विधि से सम्बद्ध है। सतरहवें द्वार में अस्वाध्याय का स्परूप कहा गया है। अठारहवें द्वार में आवश्यकसत्र की नन्दी विधि का वर्णन है। उन्नीसवें द्वार दशवैकालिक सूत्र की नन्दी विधि कही गई है। बीसवें द्वार में योगवहन सम्बन्धी खमासमण विधि कही गई है इक्कीसवें द्वार में संघट्टादि की विधि का निरूपण है। बाईसवें द्वार में उपस्थापना विधि का विवेचन है। तेवीसवें द्वार में लोच प्रवेदन (अनुमति ग्रहण) की विधि का वर्णन है। चौबीसवें द्वार में मंडलीतप विधि बतलायी गयी है। पच्चीसवाँ द्वार कालग्रहण विधि से सम्बन्धित है। छब्बीसवें द्वार में वसति प्रवेदन विधि, सत्ताईसवें द्वार में काल प्रवेदन विधि, अट्ठाईसवें द्वार में योग उत्क्षेप (योग से बाहर निकलने) विधि, उनतीसवें द्वार में योगनिक्षेप (योग प्रवेश) विधि कही गई है। तीसवाँ द्वार स्वाध्याय प्रस्थापना विधि का आख्यान करता है। इगतीसवें द्वार में आचारांगादि सूत्रों की नन्दी विधि कही गई हैं बत्तीसवें द्वार में काल संबंधी खमासमण विधि, तेतीसवें द्वार में काल मंडल विधि, चौतीसवें द्वार में अनुष्ठान की विधि, पैंतीसवें द्वार में संघट्टा ग्रहण विधि, छत्तीसवें द्वार में उत्संघट्टा विधि, सैंतीसवें द्वार में आउत्तवाणय का स्वरूप बताया गया है। अडतीसवाँ द्वार
' इस द्वार में प्रसंगवश ७१ तपों का स्वरूप विवेचित है।
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