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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/249 अट्ठाईसवाँ- अनशनविधि द्वार - इस द्वार में वृद्धावस्था को प्राप्त होने पर और जीवन का अन्त दिखाई देने पर साधु को पर्यन्ताराधना किस प्रकार करनी चाहिए और किस प्रकार अनशनव्रत स्वीकार करना चाहिए? इसका आगमविहित विधान बतलाया गया है। इसके अन्त में श्रावक के लिए भी इस अन्तिम आराधना करने का विधान बतलाया गया है। उनतीसवाँ- महापरिष्ठापनिकाविधि द्वार - अन्तिम आराधना के अनन्तर जब साधु कालधर्म को प्राप्त हो जाये, तब उसके शरीर का अंतिम संस्कार किस प्रकार किया जाना चाहिए? वह इस द्वार में बतलाया गया है। इसमें महापरिष्ठापनिका विधि को लेकर सोलह या सतरह द्वारों की चर्चा की गई हैं, जिनमें मृतक साधु का संथारा किस प्रकार करना चाहिए, परित्याग योग्य कितनी स्थंडिल भूमि की प्रेक्षा करनी चाहिये, मृतक को रात्रिपर्यन्त रखने पर किसे जागते रहना चाहिए, रात्रि में मृतात्मा उठ जाये तो क्या विधि करनी चाहिए? किस दिशा में मस्तक करके ले जाना चाहिए, परित्याग के समय स्थंडिल भूमि पर क्या विधि करनी चाहिये, खंधे पर उठाकर ले जाने वाले साधुओं को कैसे लौटना चाहिए, किस नक्षत्र में कितने पुतले बनाने चाहिए, तीन कल्प कहाँ-कहाँ उतारने चाहिए? इत्यादि का सम्यक् निरूपण प्रस्तुत किया है। तीसवाँ- आलोचना-प्रायश्चित्तविधि द्वार - इस द्वार में साधु और श्रावक दोनों के व्रतों में लगने वाले प्रायश्चित्तों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस प्रायश्चित्त विधान में एक तरह से यतिजीत कल्प और श्राद्धजीतकल्प-इन दोनों ग्रन्थों का पूरा सार आ गया है। इसमें श्रावक के सम्यक्त्वमूलक बारह व्रतों का प्रायश्चित्त विधान पूर्ण रूप से दे दिया गया है और इसी तरह साधु के मूलगुणों और उत्तरगुणों में लगने वाले छोटे-बड़े सभी प्रायश्चित्तों का यथेष्ट वर्णन किया गया है। ___ साधु के भिक्षा विषयक दोषों का विधान करने वाला पिंडालोयणाविहाण नामक ७३ गाथा का एक स्वतंत्र प्रकरण भी नया बनाकर ग्रन्थकार ने इसमें सन्निविष्ट कर दिया है और इसी तरह एक दूसरा ६४ गाथा का 'आलोचना-विही' नामक स्वतंत्र प्रकरण भी इस द्वार के अन्तिम भाग में ग्रथित किया गया है। इस आलोचना के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों तथा उसके विभिन्न द्वारों का विस्तार से निरूपण हैं, जिनमें विशेष रूप से आलोचना के गुण-दोष, आलोचना किसके पास, कब और कैसे की जाये? इसकी चर्चा है। इकतीस से लेकर छत्तीस- प्रतिष्ठाविधि द्वार - ये छः द्वार प्रतिष्ठा विधि से सम्बन्धित हैं। इन द्वारों में अनुक्रम से जिनबिम्ब प्रतिष्ठा, कलश प्रतिष्ठा, ध्वजारोपण प्रतिष्ठा, कूर्म प्रतिष्ठा, यन्त्र प्रतिष्ठा और स्थापनाचार्य प्रतिष्ठा- ये छ: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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