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________________ 242/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य 'उदयाकरणगणी' ने लिखा था, इसका भी प्रशस्ति में उल्लेख किया गया है। उपर्युक्त ४१ द्वारों का प्रतिपाद्य विषय इस प्रकार हैंपहला- सम्यक्त्वआरोपणविधि द्वार - इस प्रथम द्वार में श्रावक को किस तरह सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करना चाहिए, इसकी विधि बतलायी गयी है। इसके साथ ही सम्यक्त्व ग्रहण के समय श्रावक के लिए किन-किन नित्य और नैमित्तिक धर्मकृत्यों का करना आवश्यक है और किन-किन धर्म प्रतिकूल कृत्यों का निषेध करना उचित है, इसे संक्षेप में कहा गया है। दूसरा- परिग्रहपरिमाणविधि द्वार - दूसरे द्वार में सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करने के पश्चात् जब श्रावक को देशविरति अर्थात् श्रावक धर्म के परिचायक बारह व्रतों को ग्रहण करने की इच्छा हों, तब उनका ग्रहण कैसे किया जाय इसकी विधि बतलायी गयी है। इस द्वार का नाम परिग्रहपरिमाण विधि है, क्योंकि इसमें मुख्य करके श्रावक को परिग्रह यानि स्थावर और जंगम संपत्ति की मर्यादा का नियम लेना होता है। इसलिए इसका नाम 'देशविरति व्रतारोपण' न रखकर 'परिग्रहपरिमाणविधि' रखा है। इसमें यह भी कहा गया है कि इस प्रकार का परिग्रह परिमाण व्रत लेने वाले श्रावक या श्राविका को अपने नियमों की एक सूची बना लेनी चाहिए और इस सूची में नियमों के साथ यह लिखा रहना चाहिए कि यह व्रत मैंने अमुक आचार्य के पास, अमुक संवत् में अमुक मास और अमुक तिथि के दिन ग्रहण किया है। तीसरा- सामायिकआरोपणविधि द्वार - इस द्वार में देशविरति यानि श्रावक धर्म सम्बन्धी बारह व्रत लेने के बाद श्रावक को कभी छः महिने तक उभय सन्ध्याओं में सामायिक करने का व्रत भी लेना चाहिए, यह कहा गया है और साथ ही इसकी ग्रहण विधि भी कही गई है। चौथा- पांचवा-सामायिक ग्रहण-पारणविधि द्वार - इन दो द्वारों में सामायिकव्रत ग्रहण करने की और सामायिकव्रत पूर्ण करने की विधि निरूपित की गई है। यह विधि प्रायः सबको सुज्ञात ही है। छठा- उपधानविधि द्वार - इस छठे द्वार में उपधान अर्थात् श्रावक के अध्ययन विषयक क्रिया-विधि का विस्तृत वर्णन है। यहाँ उपधान विधि के प्रारम्भ में कहा गया है कि- कोई आचार्य इस प्रसंग में, श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ जो शास्त्रों में प्रतिपादित की गई हैं उनमें से आदि की चार प्रतिमाओं को ग्रहण करने का भी विधान करते हैं, परंतु वह हमारी परम्परा को सम्मत नहीं है। क्योंकि शास्त्रकारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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