________________
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 237
प्रस्तुत पुस्तक अपने नाम के अनुसार न केवल योगोद्वहन ( आगम पढ़ने व पढ़ाने के निमित्त की जाने वाली क्रिया) के समय की जाने वाली योग क्रिया का उल्लेख करती है अपितु दीक्षाविधि, पदस्थापनाविधि, उपस्थापना विधि आदि के निमित्त किये जाने वाले योगों एवं अनुष्ठानों की चर्चा करती हैं। इस पुस्तक में साधुजीवन से सम्बन्धित समस्त योग परक विधि-विधानों का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत कृति में दिये गये ये विधि-विधान प्रायः साधु-साध्वी द्वारा ही अनुष्ठित किये जाने योग्य हैं। इस पुस्तक के अन्त में योगचर्चा के सिवाय १. साधु की कालधर्म विधि एवं २. उपधान विधि भी वर्णित है ये दोनों विधान साधु द्वारा ही सम्पन्न करवाये जाने की दृष्टि से संकलित किये गये हैं।
इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में शास्त्रीय आधार से यह बताया गया है कि किस आगम को पढ़ने के लिए कितने वर्ष की दीक्षा पर्याय होना चाहिए। साथ ही योगोदवहन का महत्त्व, गृहस्थ को आगम पढ़ाने से दोष इत्यादि चर्चा भी की गई है। प्रस्तुत कृति में संकलित विधियों एवं तत्सम्बन्धी विषयों के नाम अधोलिखित हैं
१. योग में प्रवेश करने की विधि २. कालिकसूत्र के योग करते समयनुंतरा ( आमन्त्रण ) देने की विधि ३. कालग्राही द्वारा करने योग्य विधि ४. दांडीधर द्वारा करने योग्य विधि ५. काल प्रवेदन ( कालग्रहण करते समय करने योग्य) विधि ६. पवेयणा विधि अर्थात् प्रातः काल की आवश्यक क्रिया पूर्ण होने के बाद प्रत्याख्यान के लिए करने योग्य विधि ७. पाली पालटवानो ( तप परिवर्तन ) विधि ८. स्वाध्याय प्रस्थापना विधि ६. कालमांडला ( पाटली) विधि १०. संघट्टाग्रहण विधि ११. सन्ध्या के समय क्रिया करने की विधि १२. योग में से बाहर निकलने की विधि १३. अनुयोग विधि १४. उपस्थापना ( बडी दीक्षा) विधि १५. प्रव्रज्या (दीक्षा) विधि १६. सर्वयोगदिन, काल, नंदि आदि की संख्या का यन्त्र ( कोष्ठक) १७. अनुष्ठान विधि - योग सम्बन्धी विशिष्ट विधान १८. रात्रि में करने योग्य अनुष्ठान की जानकारी १६. अस्वाध्याय विधि २०. नष्टदंत विधि २१. योग के विषय में विशेष विवरण २२. योगसंबंधी विशेष सूचनाएँ २३. स्वाध्याय भंग के स्थान २४. चूला प्रवेदन विधि - वर्तमान में यह विधि प्रचलित नहीं है २५. गणिपदस्थापना विधि २६. आचार्यपद उपाध्यायपद एवं पन्यासपद स्थापना विधि आदि।
भट्टारकपदस्थापनाविधि
यह रचना संस्कृत या प्राकृत में है। यह रचना हमे उपलब्ध नहीं हो पाई है। अतः इसके सम्बन्ध में अधिक कुछ कहना सम्भव नहीं है । यह नागपुर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org