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228 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
के दो भेद किये गये हैं। साधु के महाव्रत और श्रावक के अणुव्रत मूलगुण प्रत्याख्यान हैं तथा पिण्डविशुद्धि आदि साधु के और दिग्विरति इत्यादि व्रत श्रावक के उत्तरगुण हैं। इसके साथ ही दस प्रकार के कालिक प्रत्याख्यान और उन प्रत्याख्यानों को विधिपूर्वक ग्रहण करने सम्बन्धी सातद्वार कहे गये हैं ।
६. स्तवनविधि पंचाशक इस पंचाशक में हरिभद्रसूरि ने स्तुति या स्तवन विधि का वर्णन किया है। इसमें द्रव्य और भाव की दृष्टि से स्तवन दो प्रकार का बताया गया है। शास्त्रोक्त विधिपूर्वक जिनमन्दिर का निर्माण, जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, तीर्थों की यात्रा, जिनप्रतिमाओं की पूजा, आदि द्रव्यस्तव हैं तथा मन-वचन और कर्म से वीतरागता की उपासना करना भावस्तव है। इसके साथ ही द्रव्यस्तव और भावस्तव की विस्तृत चर्चा की गई है।
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७. जिनभवन निर्माणविधि पंचाशक आचार्य हरिभद्र ने सातवें पंचाशक में जिनभवन- निर्माणविधि का निरूपण किया है। इसमें जिनभवन निर्माण के लिए निर्माता की कुछ योग्यताएँ आवश्यक बताई गई है। हरिभद्रसूरि के अनुसार जिन भवन-निर्माण कराने का अधिकारी वही व्यक्ति है जो गृहस्थ हो, शुभभाव वाला हो, समृद्ध हो, कुलीन हो, धैर्यवान् हो, बुद्धिमान हो और धर्मानुरागी हो। साथ ही आगमानुसार जिनभवन के निर्माण विधि का ज्ञाता हो। इस सम्बन्ध में पाँच द्वारों का निर्देश भी किया गया है वें पांच द्वार इस प्रकार हैं -
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१. भूमिशुद्धिद्वार - जिनभवन का निर्माण करने योग्य भूमि का शोधन (शुद्धि) करना। २. दलशुद्धिद्वार- जिनमन्दिर निर्माण के लिए काष्ठ, पत्थर आदि खरीदते समय होने वाले शकुन और अपशकुन जानना देखना, ३ . भृतकानतिसन्धानद्वार - जिनमन्दिर निर्माण सम्बन्धी कोई भी कार्य करते समय मजदूरों का शोषण नहीं करना । ४. स्वाशय वृद्धिद्वार - जिनभवन निर्माण के समय जिनेन्द्र देव के गुणों का यथार्थ ज्ञान करना एवं जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के लिये की गयी प्रवृत्ति से होने वाला शुभ परिणाम स्वाशयवृद्धि है । ५. यातनाद्वार - जिनभवन के निर्माण हेतु लकड़ी लाना, भूमि खोदना आदि कार्यों में जीव - हिंसा न हों या कम से कम हो इसके लिये सावधानी रखना।
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८. जिनबिम्बप्रतिष्ठा विधि पंचाशक इस आठवें पंचाशक में जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा विधि का विवेचन किया गया है। इस पंचाशक के प्रारंभ में ग्रन्थकार ने यह कहा है कि जिनबिम्ब का निर्माण करवाने वाले व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह किसी निर्दोष चारित्र वाले शिल्पी से ही बिम्ब का निर्माण करवाएं और उसे पर्याप्त पारिश्रमिक दें। यदि निर्दोष चारित्र वाला शिल्पी नहीं मिलता है और दूषित चरित्र वाले शिल्पकार से जिनबिम्ब का निर्माण करवाना पड़े तो
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