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224/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
प्रथम प्रव्रज्याविधि अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत २२८ पद्य हैं। इसमें दीक्षा सम्बन्धी विधि-विधान प्रतिपादित हैं जिनमें प्रव्रज्या का अर्थ, प्रव्रज्या के पर्यायवाची शब्द, दीक्षा अधिकारी गुरु के गुण, शिष्य को हितशिक्षा न देने से होने वाली हानि, दीक्षा लेने वाले मुमुक्षु के सोलह गुण, दीक्षा की दुष्करता, दीक्षा के लिए योग्य-अयोग्य वय, बालदीक्षा का सैद्धांतिक एवं तार्किक दृष्टि से सचोट समर्थन, संयम की अनुमति के लिए माता-पिता को समझाने की शास्त्रीय विधि, दीक्षा दान के लिए शुभाशुभ नक्षत्र-तिथि आदि का विचार, मुमुक्ष की योग्यता का निर्णय, दीक्षाविधि एवं हितशिक्षा प्रदान इत्यादि पर विशेष प्रकाश डाला गया है। द्वितीय दैनिकचर्याविधि अधिकार- इस नित्य क्रिया सम्बन्धी अधिकार में ३८१ पद्य हैं। यह अधिकार मुनि जीवन के दैनन्दिन क्रिया कलापों सम्बन्धी विधि-विधान की चर्चा करता है। इसमें प्रतिदिन करने योग्य क्रिया के दस द्वार प्रतिलेखनादि की शास्त्रीय विधि, प्रतिलेखना के दोष, प्रातःकालीन प्रतिलेखना का काल, प्रतिलेखना में वस्त्रों का क्रम, वसति प्रमार्जन की विधि, पात्र प्रतिलेखन की विधि, प्रतिलेखित वस्त्र-पात्रादि को रखने की विधि, आहार हेतु भ्रमण करने से पूर्व करने योग्य विधि, भिक्षा ग्रहण करने सम्बन्धी नियम, भिक्षा लाकर वसति में प्रवेश करने की विधि, भिक्षा में लगे हुए दोषों की आलोचना विधि, गुरु को आहार-पानी दिखाने की विधि, आहार सेवन विधि, पात्र धोने की विधि, भोजन करने के कारण, स्थंडिल भूमि जाने की विधि, मार्ग पर चलने की विधि, ईंट के टुकड़े आदि ग्रहण करने की विधि, मलविसर्जन विधि, प्रतिलेखना करने के बाद की विधि, सर्यास्त के पूर्व करने योग्य विधि, दैवसिक प्रतिक्रमण विधि, आलोचना से होने वाले लाभ, रात्रिक प्रतिक्रमण विधि, प्रत्याख्यान के आगार, प्रत्याख्यान में आगार रखने के कारण, स्वाध्याय से होने वाले लाभ, सूत्र प्रदान करने की विधि, विधिपूर्वक सूत्रदान से होने वाले लाभ, अविधि पूर्वक सूत्रदान करने से होने वाली हानियाँ, योगोद्वहन विधि इत्यादि विषयों का विस्तारपूर्वक विवचेन किया गया है। तृतीय उपस्थापनाविधि अधिकार- प्रस्तुत अधिकार में ३२१ पद्य हैं। इसमें बड़ी दीक्षा अर्थात् महाव्रतारोपण विधि का विवेचन हुआ है। साथ ही इसमें व्रतस्थापना के द्वार, व्रतस्थापना के योग्य जीव का वर्णन, व्रतस्थापना कब?, पृथ्वीकायादि में जीवत्व की सिद्धि, छ:व्रतों का स्वरूप, व्रतों के अतिचार, नवदीक्षित की परीक्षा विधि, गुरुकुलवास द्वारा गुणों का लाभ, गुरुकुलवास और गच्छवास की संलग्नता, वसति के गुण-दोष, पार्श्वस्थादि साधुओं का सम्पर्क रखने से होने वाली हानियाँ, भिक्षा में त्याज्य पदार्थ, गोचरी के बयालीस दोष, मांडली के पांच दोष, आहार का परिमाण, उपधि एवं उपकरणों की संख्या, उनके प्रयोजन और माप, चारित्र की
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