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________________ 204/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य इसी प्रसंग में कौन किस उपकरण को लेकर गमन करें ? इसका वर्णन किया गया है उस समय आचार्य को सब बातों का संकेत कर देना चाहिए कि हम लोग अमुक समय में गमन करेंगे, अमुक जगह ठहरेंगे आदि इस तरह गच्छ गमन की विधि बतायी गयी है। मार्ग जानने वाले साधु को साथ रखने का एवं वसति में पहुँचकर पांव प्रमार्जन करने का विधान बतलाया गया है। विकाल के समय वसति में प्रवेश करने के दोष बताये गये हैं। आगे वसति में प्रवेश करने के बाद संथारा लगाने की विधि बतलायी गयी है। चोर का भय होने पर मल-मूत्र त्याग की विधि कही गई है। तदनन्तर साधर्मिक कृत्यों पर प्रकाश डाला गया है। साधु के लिए प्रमाणयुक्त वसति में रहने का विधान किया है। आचार्य से पूछकर भिक्षा के लिए गमन करने का वर्णन किया गया है। यदि कोई साधु बिना पूछे ही चला गया हो और समय पर न लौटा हो तो उसकी खोज करने की विधि, भिक्षा के लिए गये हुए साधु को चोर आदि उठा लें जायें तो बंधन से छुड़वाने की विधि, प्रतिलेखना विधि, मल-मूत्र त्याग विधि आदि पर प्रकाश डाला गया है। पिण्डद्वार- इस द्वार में एषणा के तीन प्रकार कहे हैं १. गवेषण-एषणा, २. ग्रहण- एषणा, और ३. ग्रास-एषणा। इस सम्बन्ध में यह निर्देश दिया गया है कि जैन श्रमण को इन तीन प्रकार की एषणाओं से विशुद्ध आहार ग्रहण करना चाहिये। तदनन्तर चीर प्रक्षालन के दोष, चीर-प्रक्षालन न करने के दोष, रोगियों के वस्त्र बार-बार धोने का विधान, वस्त्रों को कौन से जल से धोना, पहले किसके वस्त्र धोना आदि का विधान, पात्र-लेखन विधि, लेप के प्रकार आदि बताये गये हैं। इसी क्रम में परग्राम में भिक्षाटन की विधि बताई है। नीचे द्वार वाले घर में भिक्षा न ग्रहण करने का विधान बताया है। भारी वस्तु से ढके हुए आहार को ग्रहण करने का निषेध किया गया है। भिक्षाग्रहण कर वसति में प्रवेश करने की विधि, आलोचना विधि, गुरु को भिक्षा दिखाने की विधि आदि पर प्रकाश डाला गया है। इसी क्रम में आगे आहार करते समय थूकने आदि के लिए तथा अस्थि, कंटक आदि फेंकने के लिए बर्तन रखने का विधान बतलाया गया है। भोजन का क्रम, भोजन-शुद्धि, भोजन करने के कारण बताये गये हैं। बची हुई भिक्षा के परित्याग की विधि, स्थंडिल में मल आदि के त्याग की आवश्यक विधि एवं आवश्यक के लिए कालविधि का प्ररूपण किया गया है। उपधिद्वार- इस द्वार में जिनकल्पी मुनि के लिए बारह, स्थविरकल्पी मुनि के लिए चौदह और साध्वियों के लिए पच्चीस उपकरण बताये गये हैं। इसकी चर्चा Jain Education International 'For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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