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190 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
१०. कर्णवेध संस्कार विधि - इस संस्कार में शिशु का कर्ण छेदन कर विधि-विधान पूर्वक आभूषण पहनाया जाता है। प्रस्तुत कृति में बताया गया है कि यह संस्कार तीसरे - पाँचवें या साँतवें वर्ष में किया जाता है उसमें भी जिस मास में शिशु का सूर्य बलवान हो उस मास के शुभ वार आदि में करना चाहिए। इस संस्कार विधि को सम्पन्न करने के विषय में यह भी कहा गया है कि कर्णवेध संस्कार की विधि अपने - अपने कुल की परम्परानुसार कुलदेवता के स्थान पर, पर्वत पर, नदी के किनारे अथवा घर में करनी चाहिए।
११. चूडाकरण- संस्कार विधि - चूडा का तात्पर्य बालों के गुच्छ या शिखा से है जो मुण्डित सिर पर रखी जाती है। इस संस्कार में जन्म के उपरान्त पहली बार सिर पर एक बालगुच्छ ( शिखा ) रखकर शेष सिर के बालों का मुण्डन किया जाता है। इस संस्कार को सम्पन्न करने के लिए शुभ दिन, नक्षत्र, वार आदि बताये गये हैं। यह संस्कार किन दिनों में न करें, उसका भी उल्लेख किया गया है। मुख्य रूप से बालक का चंद्रबल एवं ताराबल देखकर क्षौर कर्म किये जाने का उल्लेख है। इसके साथ यह संस्कार भी पूर्वोक्त कुल देवता आदि के स्थानों पर किया जाना चाहिए ऐसा कहा गया है।
१२. उपनयन संस्कार विधि- उपनयन का अर्थ है- समीप या सन्निकट ले जाना। इस संस्कार में बालक को विधि-विधान पूर्वक आचार्य के पास ले जाकर ज्ञानार्जन हेतु ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा देकर विद्यार्थी बनाया जाता है। वस्तुतः यह संस्कार मनुष्यों के वर्ण विशेष में प्रवेश कर तदनुरूप वेश एवं मुद्रा धारण करने के लिए तथा अपने - अपने गुरु के उपदिष्ट धर्ममार्ग में प्रवेश करने के लिए किया जाता है। ऐसा आचार दिनकर का अभिमत है।
प्रस्तुत विधि में जिन उपवीत का स्वरूप इस प्रकार प्रतिपादित हैसर्वप्रथम दोनों स्तनों के अन्तर से समरूप चौराशी धागों का एक सूत्र करें, फिर उसे त्रिगुण करें पुनः उस त्रिगुण सूत्र का त्रिगुण करें ऐसा एक तन्तु होता है, उसके साथ ऐसे दो तन्तु और जोड़ देने पर एक अग्र होता है। सभी वर्णों में ऐसा अग्र धारण करने की अलग-अलग व्यवस्था है। इस प्रकार जिन उपवीत में नवतंतु गर्भित त्रिसूत्र होते हैं जो क्रमशः ब्रह्मचर्य की नवगुप्ति के तथा ज्ञान- दर्शन - चारित्र रूप त्रिरत्न के प्रतीक हैं।
इसमें मेखला मंत्र, कोपीन मंत्र, जिनोपवीत धारण करने मंत्र तथा व्रतबंधन विधि, चारों वर्णों सम्बन्धी व्रतादेश विधि, व्रतविसर्ग विधि, गोदान विधि, शूद्र को उत्तरीय वस्त्र प्रदान करने की विधि, बटुक अर्थात् ब्रह्मचारी को विद्यार्थी बनाने की विधियाँ भी प्रतिपादित हैं।
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