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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/185 अध्याय ६ संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी विधि-विधानपरक साहित्य अनुयोगविधि यह कृति अप्रकाशित है। हमें प्राप्त नहीं हुई है। जिनरत्नकोश के आधार पर यह 'अनन्तनाथ मंदिर कच्छी ओसवाल दशा, आंचलगच्छ मांडवी, मुंबई' के ज्ञान भंडार में उपलब्ध है। अनुयोग का अर्थ है- सूत्र, अर्थ एवं सूत्रार्थ का प्रतिपादन करना। सम्भवतः इसमें वाचना देने की विधि का उल्लेख होना चाहिए।' आचारविधि - इस नाम की छः कृतियाँ देखी जाती है। आचारविधि - यह संस्कृत में है और इसकी रचना वि.सं. १३५२ में हुई है। आचारविधि - यह रचना प्राकृत में है तथा २१ अध्यायों में विभक्त है। आचारविधि - यह अज्ञातकर्तृक है। आचारविधि - यह भी अज्ञातकर्तृक है। आचारविधि - इसके कर्ता मुनिसुन्दरसूरि है। आचारविधि - इसकी रचना अभयदेवसूरि ने की है। इसका दूसरा नाम सामाचारी है। इन पूर्वोक्त कृतियों में आचार से सम्बन्ध रखने वाले विधि-विधान वर्णित होने चाहिए, ऐसा इन कृतियों के नाम से स्पष्टतः सूचित होता है। आचारदिनकर __ आचारदिनकर नामक यह ग्रन्थ चन्द्रकुल से उद्भूत खरतरगच्छ की रुद्रपल्लीय शाखा के जयानन्दसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि द्वारा रचित है। इसका श्लोक परिमाण १२५०० है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल पन्द्रहवी शती (संवत १४६३) का उत्तरार्ध है। यह कृति मुख्यतः संस्कृत गद्य में है। किन्तु कई स्थलों पर प्राकृत गाथाएँ उद्धत की गई हैं। स्थल-स्थल पर संस्कृत श्लोकों की भी प्रधानता रही हुई हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के नामोल्लेख से यह प्रतीत होता है कि इसमें जैन आचार का प्रतिपादन होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं है, वस्तुतः इस ग्रन्थ में आचार ' जिनरत्नकोश पृ. ६ २ वही पृ. २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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