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176 / विविध तप सम्बन्धी साहित्य
बीसस्थानकतपविधि
यह कृति' मुनि मंगलसागरजी द्वारा संशोधित की गई है। यह पुस्तक हिन्दी गद्य में है। इसमें विस्तारपूर्वक एवं प्रत्येक पद की महिमा सहित बीसस्थानक तप की विधि चर्चित हुई है।
रोहिणीतपविधि
यह भी एक संकलित पुस्तिका है। यह हिन्दी पद्य में निबद्ध है। यह तपाराधना वासुपूज्य स्वामी के जन्मादि पाँच कल्याणक जिस रोहिणी नक्षत्र में हुए, उससे सम्बन्धित है। इस पुस्तक के अन्त में 'रोहिणी' माहात्म्य को बताने वाला . कथानक भी दिया गया है।
लघुसर्व-तपस्याविधि
यह संकलित पुस्तक मुख्यतः हिन्दी पद्य में निबद्ध है। इसमें निम्न तप विधियों का संकलन हुआ है- १. ज्ञानपंचमी तप विधि, २. कार्तिक पूर्णिमा तप विधि ३. चैत्रीपूर्णिमा तप, ४. बीशस्थानक तप, ५. पंचकल्याणक तप, ६. वर्षीतप, ७. छमासी तप विधि, ८. सोलीया तप ६. पखवासा तप १०. चान्द्रायण तप, इसके अतिरिक्त अल्प दिनों की संख्या वाले ११. तीर्थंकरवर्द्धमान तप १२. २८ लब्धि तप १३. चौदहपूर्व तप १४. इन्द्रियजय तप १५. कर्मसूदन तप १६. समवसरण तप १७. पैंतालीस आगम तप १८. दसयतिधर्म तप १६. पंचपरमेष्ठी तप २०. नंदीश्वर तप २१. रोहिणी तप आदि ।
इस पुस्तक के अन्त में आवश्यक एवं उपयोगी स्तुति-स्तवनादि का संकलन भी किया गया हैं।
वर्द्धमानतपविधि
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी पद्य में है। इसमें वर्द्धमान तप के समय बोले जाने योग्य चैत्यवन्दन-स्तवनादि श्री कवीन्द्रसागरसूरि रचित हैं। इस तप में क्रमशः १०० आयंबिल तक चढ़ा जाता हैं। यह तप सर्वप्रथम श्री चन्द्रराजा ने किया था । वर्तमान में इस तप का प्रचलन तपागच्छ परम्परा में सर्वाधिक है।
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श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार - सूरत ने वि.सं. २००४ में, प्रकाशित की है। से प्रकाशित हुई है।
२ वि.सं. २००८
में जयपुर
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