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174 / विविध तप सम्बन्धी साहित्य
आराधना-विधि ६. अष्टम दिन - चारित्रपद की आराधना - विधि १०. नवम दिन तपपद की आराधना - विधि 99. नवपद मंडल रचना विधि १२. पारणा दिवस विधि १३. नवपद निमित्त कायोत्सर्ग विधि १४. नवपद देववन्दनविधि १५. प्रत्याख्यान पारने के पूर्व और पारने के पश्चात् करने योग्य विधि
नवपदाराधना-विधि
यह कृति' मुख्यतः हिन्दी पद्य में है। कुछ पद प्राकृत एवं संस्कृत में रचित हैं। इस कृति का संकलन साध्वी द्वय ने किया है। इसमें पृथक्-पृथक् चार प्रकार की नवपद विधियां दी गई हैं। प्रथम नवपद चैत्यवन्दनविधि - श्री देवचन्द्र जी महाराज कृत है। द्वितीय नवपद चैत्यवन्दनविधि पाठक प्रवर चारित्रनन्दी गणि विरचित है। तृतीय नवपद चैत्यवन्दनविधि - उपाध्याय मणिप्रभसागर जी रचित है । और चतुर्थ नवपद चैत्यवन्दनविधि - प्रवर्त्तिनी सज्जन श्रीजी द्वारा निर्मित है। इसके अतिरिक्त अन्त में नवपद से सम्बन्धित अन्य चैत्यवन्दन, स्तुति, स्तवनादि दिये गये हैं। यह कृति खरतरगच्छीय परम्परा के अनुसार संकलित की गई है।
उक्त नाम की एक अन्य कृति भी है उसमें नवपद विषयक अनेक रचयिताओं की चैत्यवन्दन विधियाँ संग्रहित हैं । सर्वप्रथम देवचन्द्रजीकृत स्नात्रपूजा विधि दी गई हैं। उसके बाद श्री ज्ञानविमलसूरि, उपा. देवचन्द्रजी एवं उपा. यशोविजयजी द्वारा रचित नवपद चैत्यवन्दन विधियां दी गई है। उसके बाद पाठक प्रवर हीरधर्मगणि विरचित चैत्यवन्दनविधि और पाठक प्रवर चारित्रनन्दीगणि रचित चैत्यवन्दन विधि है ।
नवपद - बीशस्थानक - वर्धमान आदि तपआराधनाविधि
यह संकलित कृति गुजराती गद्य-पद्य में निबद्ध है। इसमें कई प्रकार के प्रचलित तप दिये गये हैं। श्री नवपदतप, बीशस्थानकतप, श्री वर्धमानतप आदि का विस्तृत प्रतिपादन किया गया है। श्री नवपद के नौ दिनों की पृथक्-पृथक् विधि कही गई हैं। इसी प्रकार बीशस्थानक तप के बीस पदों की अलग-अलग विधि बतायी गयी हैं। इसमें कुल १४ प्रकार के तप दिये हैं। इसके साथ ही तपाराधना की आवश्यक अंग (क्रिया) रूप कुछ विधियाँ भी वर्णित है वीरविजयजी एवं देवचंद्रजी कृत स्नात्रपूजा भी संकलित है । '
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यह कृति कलाकार स्ट्रीट, बड़ा बाजार कोलकाता से प्रकाशित है।
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यह पुस्तक ‘श्रावक अमृतलाल पुरुषोत्तमदास अहमदाबाद से सं. १६६५ में प्रकाशित हुई है।
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