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________________ हमें परिचय प्राप्त होता है, अपितु तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ये विधि-विधान कहाँ से, किस रूप में लिए गये और उन्हें किस रूप में परिमार्जित किया गया। जैन परम्परा में विधि-विधान सम्बन्धी लगभग शताधिक ग्रन्थ मिलते हैं, किन्तु उनके ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सम्बन्ध में कोई प्रयास नहीं हुआ, मात्र यही नहीं उनको हिन्दी भाषा में या गुजराती भाषा में अनुदित करके प्रकाशित करने का भी कोई प्रयत्न नहीं हुआ । संयोग से सन् 1995 में साध्वी प्रियदर्शनाश्री जी के साथ साध्वी सौम्यगुणाश्री जी आदि वाराणसी में मेरे सानिध्य में अध्ययन करने के लिए आये । उस समय मैंने उन्हें जैन विधि-विधानों से युक्त खरतरगच्छ के जिनप्रभसूरि का ग्रन्थ विधिमार्गप्रपा न केवल अनुदित करने के लिए दिया अपितु उसी विषय पर शोधकार्य करने का भी निर्देश दिया। यहीं से साध्वी सौम्यगुणाश्री जी की जैन विधि-विधानों के अध्ययन की रूचि का विकास हुआ और इस सम्बन्ध में तुलनात्मक दृष्टि से कुछ लिखने का प्रयत्न भी उन्होंने प्रारम्भ किया। उनके इन्हीं प्रयासों का सुफल है कि जहाँ एक और विधिमार्गप्रपा जैसे विधि-विधानों के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पर उन्हें चेक की उपाधि प्राप्त हुई, वहीं यह ग्रन्थ हिन्दी भाषा में अनुदित होकर प्रकाशित भी हुआ। इस उपलब्धि ने उन्हें इस दिशा में आगे कार्य करने के लिए प्रेरित किया और इसी लक्ष्य को लेकर वे जैन विधि-विधानों के तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन की दिशा में प्रवृत्त हुई, किन्तु इस अध्ययन में प्रवृत्त होने के पूर्व विधि-विधानों से सम्बन्धित साहित्य का आलोडन, विलोडन आवश्यक था । इसी तथ्य को लक्ष्य में रखकर मैंने उन्हें सर्वप्रथम जैन विधि-विधानों के साहित्य का विस्तृत इतिहास लिखने के लिए प्रेरित किया । साध्वी श्रीजी ने मेरे सानिध्य में कठोर परिश्रम करके विगत एक वर्ष की अवधि में विधि-विधान सम्बन्धी जैन साहित्य के बृहद् इतिहास का प्रणयन किया । मालेगांव जैन संघ के अर्थ सहयोग से आज ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है यह प्रसन्नता का विषय है। मुझे विश्वास है कि यह कृति न केवल विद्वद्वर्ग, अपितु जैन विधि-विधानों में रूचि रखने वाले सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। इसमें संपादन और मार्गदर्शन चाहे मेरा हो, किन्तु वास्तविक श्रम तो साध्वी जी का ही है। उन्होंने जैन साहित्य के बृहद् भण्डार का आलोडन - विलोडन करके यह ग्रन्थ रत्न लिखा है । मेरी यही भावना है। कि साध्वी श्री सौम्यगुणा श्री जी इस दिशा में अनवरत अध्ययनशील बनी रहें और ऐसे अनेकों ग्रन्थ रत्नों का निर्माण कर जैन विद्या को आलोकित करें। आषाढ़ शुक्ला पंचमी Jain Education International For Private & Personal Use Only डॉ. सागरमल जैन शाजापुर www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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