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________________ 152/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य व्याख्या की गई है। ८. क्रम प्रयोजन द्वार- इस द्वार में उपक्रम, निक्षेप, अनुगम एवं नय के क्रम को युक्तियुक्त सिद्ध किया है।' आगे उपोद्घात के रूप में तीर्थ का स्वरूप, सामायिक लाभ, सामायिक के बाधक कारण, व्याख्यान विधि, सामायिक सम्बन्धी द्वार विधि- इस द्वार में उद्देश, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र, काल, पुरूष, कारण, प्रत्यय, लक्षण- नयसमवतार, अनुमत, किम्कतिविधि, कस्य, कुत्र, केषु, कथम् कियच्चिर,कति, सान्तर, अविरहित, भव, आकर्ष, स्पर्शन, निरूक्ति' का विवेचन इन द्वारों के अन्तर्गत गणधरवाद, आत्मा की सिद्धि के हेतु, जीव की अनेकता, जीव का स्वदेह-परिमाण, जीव की नित्यानित्यता, कर्म का अस्तित्व, कर्म और आत्मा का सम्बन्ध, आत्मा और शरीर का भेद, ईश्वर कर्तृत्व का खंडन, आत्मा की अदृश्यता, वायु और आकाश का अस्तित्व, भूतों की सजीवता, हिंसा-अहिंसा का विवेक, इहलोक और परलोक की विचित्रता, बंध और सिद्धि, निववाद, इत्यादि अनेक विषयों का सयुक्ति सहेतु प्रतिपादन किया गया है। अन्त में 'करेमिभंते' इत्यादि सामायिकसूत्र के पदों की व्याख्या की गई है। उसमें 'करेमि' पद के लिए करण शब्द का प्रयोग क्रिया (विधि) के अर्थ में किया है करण के नाम-स्थापनादि छह प्रकार कहे हैं। 'भंते' शब्द का अर्थ कल्याण, सुख, निर्वाण आदि किये गये हैं। सामायिक, सर्व, सावद्य, योग, प्रत्याख्यान, यावज्जीव, विविध, करण, प्रतिक्रमण, निन्दा, गर्दा, व्युत्सर्जन आदि पदों का भी सविस्तार विवेचन किया है। अन्तिम गाथा में इस भाष्य को सुनने से जिस फल की प्राप्ति होती है उसकी ओर निर्देश करते हुए कहा गया है कि सर्वानुयोग मूलरूप इस सामायिक के भाष्य को सुनने से परिकर्मित मतियुक्त शिष्य शेष सकल शास्त्रानुयोग के योग्य हो जाता है। निःसंदेह विशेषावश्यकभाष्य के इस विस्तृत परिचय से स्पष्ट होता है कि आचार्य जिनभद्र ने इस एक ग्रन्थ में जैन विचारधाराओं का सूक्ष्मता के साथ संग्रह किया है। जिनभद्रगणि की तर्कशक्ति, अभिव्यक्तिकुशलता, प्रतिपादनप्रवणता एवं व्याख्यान विदग्धता का परिचय प्राप्त करने के लिए यह एक ग्रन्थ ही पर्याप्त है। सत्यतः विशेषावश्यकभाष्य जैन ज्ञान महोदधि है। जैन आचार-विचार एवं ' विशेषावश्यकभाष्य गा. ६१५-६ २ वही गा. १४८४-५ ३ वही गा. ३२६६-३४३८ • ३४३६-३४७६ वही गा. ३४७७-३५८३ ६ वही गा. ३६०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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