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150/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य
प्रतिक्रमण - यह कृति ६० गाथाओं में निबद्ध है। प्रतिक्रमण - यह रचना गणधर गौतम की मानी जाती है। इसके यथार्थ कर्ता
और काल का कोई निर्देश नहीं मिला है। विशेषावश्यकभाष्य
__ जैन साहित्य में विशेषावश्यकभाष्य' एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें जैन आगमों में वर्णित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा की गई है। जैन ज्ञानवाद, प्रमाणवाद, नयवाद, आचार-नीति, स्याद्वाद, कर्मसिद्धांत आदि सभी विषयों से सम्बन्धित सामग्री का दर्शन इस ग्रन्थ में सहज ही उपलब्ध होता है। इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें जैन तत्त्व का निरूपण केवल जैन दृष्टि से न होकर इतर दार्शनिक मान्यताओं की तुलना के साथ हुआ है। आचार्य जिनभद्र ने आगमों की सभी प्रकार की मान्यताओं का जैसा तर्कपूर्वक निरूपण इस ग्रन्थ में किया है वैसा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। यही कारण है कि जैनागमों के तात्पर्य को सम्यक् प्रकार से समझने के लिए विशेषावश्यकभाष्य एक अत्यंत उपयोगी ग्रन्थ है।
मूलतः यह ग्रन्थ आवश्यकसूत्र पर रचा गया है। छह आवश्यकों में से इसमें केवल प्रथम आवश्यक 'सामायिक अध्ययन' से सम्बन्धित नियुक्तियों की गाथाओं का विवेचन किया गया है। यह प्राकृत की पद्यात्मक शैली में निबद्ध है। इस ग्रन्थ में कुल ३६०२ गाथाएँ है। इस ग्रन्थ की विषयवस्तु अत्यन्त व्यापक है।
हमें तो इतना मात्र समझना है कि सामायिक एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है। साधु और गृहस्थ दोनों के लिए अवश्य करने योग्य एक विशिष्ट आराधना है। विधिपूर्वक आचरित करने योग्य एक क्रिया है। साधना का मूल तत्त्व है। इसमें सामायिक विधि उतनी चर्चित नहीं हुई है जितने सामायिक विधि के अन्य तत्त्व हैं। कुछ भी हो इस ग्रन्थ को सूक्ष्म रूप से ही सही विधिपरक मानना होगा।
इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रवचन को प्रणाम किया है एवं गुरु के उपदेशानुसार सम्पूर्ण चरणगुण (चारित्रगुण) के संग्रह रूप आवश्यक अनुयोग कहने की प्रतिज्ञा की गई है। इसके साथ ही इसमें कहा गया है कि सामायिक आवश्यक रूप विधि का फल, योग, मंगल, समुदायार्थ, द्वारोपन्यास, तद्भेद, निरुक्त,
' यह ग्रन्थ शिष्य हिताख्यबृहद्वृत्ति (मलधारी हेमचन्द्रकृत टीका) सहित- यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, बनारस से वी.सं. २४२७-२४४१ में प्रकाशित हुआ है। इसके अन्य प्रकाशन भी बाहर आये हैं।
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