SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यहाँ यह समझना अत्यन्त जरूरी है कि सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दन, प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग के द्वारा आत्मशुद्धि की जाती है किन्तु पुनः आसक्ति का साम्राज्य अन्तर्चेतना में प्रविष्ट न हों, उसके लिए प्रत्याख्यान अत्यन्त आवश्यक है। अनुयोगद्वार में प्रत्याख्यान का एक नाम 'गुणधारण' दिया गया है। गुणधारण से तात्पर्य है- व्रत रूपी गुणों को धारण करना । प्रस्तुत ग्रन्थ में इस आवश्यक के अन्तर्गत दस प्रकार के प्रत्याख्यान सूत्र दिये गये हैं वे प्रत्याख्यान निम्न हैं जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 137 नवकारशी, पौरूषी, पुरिमड्ड, एकाशना, एकलठाणा, आयंबिल, उपवास, दिवसचरिम (चौविहार, तिविहार आदि) अभिग्रह और निर्विकृतिक । उपर्युक्त विवेचन से ज्ञात होता है कि षडावश्यकों का साधक के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहाँ आवश्यक से आध्यात्मिक शुद्धि होती है, वहाँ लौकिक जीवन में भी समता, नम्रता, क्षमाभाव आदि सद्गुणों की वृद्धि होने से आनन्द के झरने बहने लगते हैं। व्याख्यासाहित्य आवश्यकसूत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण सूत्र' है कि उस पर सबसे अधिक व्याख्याएँ लिखी गयी है। इसके मुख्य व्याख्या ग्रन्थ निम्न हैं- निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि वृत्ति, स्तबक (टब्बा), हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी विवेचन | नियुक्ति - १. सर्वप्रथम इस सूत्र पर भद्रबाहु (द्वितीय) द्वारा २५५० गाथाओं में नियुक्ति लिखी गई है। यह माना जाता है कि निर्युक्तिकार भद्रबाहु ज्योतिर्विद् वराहमहिर के सहोदर भ्राता थे। उनका समय विक्रम की छठीं शताब्दी है, किन्तु इस सम्बन्ध में मतभेद भी है । २. शिष्यहिता और बृहद्वृत्ति- यह नियुक्ति आवश्यक सूत्र पर जिनभट्ट या जिनभद्र के शिष्य हरिभद्रसूरि द्वारा १२००० श्लोक परिमाण रची गई है। ३. आवश्यक मलयगिरिवृत्ति - आचार्य मलयगिरि द्वारा इस सूत्र पर १८००० श्लोक परिमाण वृत्ति लिखी गई है। ४. नियुक्ति - अवचूर्णि - तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि के शिष्य जैनसागर ? ने अवचूर्णि रची है। इस चूर्ण का रचनाकाल १४ वीं शती (१४४० ) है । ५. नियुक्ति अवचूर्णि - सोमसुन्दरसूरि ने भी एक अवचूर्णि लिखी है। ६. निर्युक्ति दीपिका - यह निर्युक्ति अचलगच्छीय मेरूतुंगसूरि के शिष्य माणिक्यशेखर ने निर्मित की है। यह ११७५० श्लोक परिमाण की है तथा इसका रचनाकाल १४ वीं शती (१४७१) है । ७. निर्युक्ति अवचूरि- यह अवचूरि शुभवर्धनगणि की है। इसका रचनाकाल १५४० है । ८. निर्युक्ति- टीका - शिष्यहिता वृत्ति- यह टीका शालिभद्रसूरि के शिष्य नेमिसाधु ने ११ " देखें, जिनरत्नकोश, पृ. ३५ bain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy