SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक की साधना के लिए जो सूत्र - पाठ बोले जाते हैं तथा आवश्यकसूत्र में जिनका नामोल्लेख हैं, वे ये हैं - १. गुरुवन्दनसूत्र, २. प्रतिज्ञासूत्र ( करेमिभंते सूत्र, ३. मंगलसूत्र ( चत्तारिमंगलं ), ४ ईर्यापथिकसूत्र (इरियावहि ), ५. आगारसूत्र (तस्स. -अन्नत्थ.) द्वितीय चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक षडावश्यक में दूसरा स्थान 'चतुर्विंशतिस्तव' का है। साधक सामायिक आवश्यक द्वारा सावद्य योग से निवृत्त होता है। सावद्य योग से निवृत्त रहकर वह किसी न किसी आलम्बन का ग्रहण करता है, जिसमें वह समभाव में स्थिर रह सके । एतदर्थ ही सामायिक में साधक तीर्थंकर की स्तुति करता है। तीर्थंकर पुरूष त्याग, वैराग्य और संयम साधना की दृष्टि से महान् हैं। उनके गुणों का उत्कीर्त्तन करने से साधक के अन्तर्हृदय में आध्यात्मिक बल का संचार होता है। अतः दूसरे आवश्यक की साधना के लिए 'चतुर्विंशतिस्तव' (लोगस्ससूत्र ) बोला जाता है । जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 135 तृतीय वन्दन आवश्यक साधना के क्षेत्र में तीर्थंकर के पश्चात् दूसरा स्थान गुरू का होता है। जब साधक के अन्तर्मानस में भक्ति का स्रोत प्रवाहित होता है तब सहसा वह सद्गुरुओं के चरणों में झुक जाता है। इस प्रकार वन्दन करने से अहंकार नष्ट होता है, विनय की उपलब्धि होती है, तीर्थंकरों की आज्ञा का पालन करने से शुद्ध धर्म की आराधना होती है। अतः साधक को सतत जागरूक रहकर वन्दन करना चाहिए । प्रस्तुत सूत्र में इस तीसरे आवश्यक के अन्तर्गत द्वादशावर्त्तवन्दनसूत्र, वन्दन विधि एवं गुरु की तैंतीस आशातनाओं का वर्णन किया गया है। - " चतुर्थ प्रतिक्रमण आवश्यक प्रतिक्रमण जैन परम्परा का एक विशिष्ट शब्द है । प्रतिक्रमण का शाब्दिक अर्थ है - पीछे लौटना | जो पापकर्म मन, वचन और काया से स्वयं किये जाते हैं अथवा दूसरों से करवाये जाते हैं अथवा दूसरों के द्वारा किये हुए पापों का अनुमोदन किया जाता है, उन सभी पापों की निवृत्ति के लिए कृत पापों की आलोचना एवं निन्दा करना प्रतिक्रमण है। गृहीत नियमों और मर्यादाओं के अतिक्रमण से पुनः लौटना प्रतिक्रमण है। आवश्यकनिर्युक्ति, आवश्यकचूर्णि, आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, आवश्यकमलयगिरिवृत्ति, प्रभृति ग्रन्थों में प्रतिक्रमण को लेकर विस्तार के साथ विचार-विमर्श किया गया है। उन्होंने प्रतिक्रमण के आठ' पर्यायवाची शब्द भी दिए हैं, जो प्रतिक्रमण के विभिन्न अर्थों को व्यक्त करते हैं। प्रतिक्रमण साधक - जीवन की एक अपूर्व क्रिया है। यह वह Jain Education International - - पडिकमणं पडियरणा, परिहरणा बारणा नियत्तीय । निन्दा गरिहा सोही, पडिकमणं अट्ठहा होई ॥ आवश्यक नियुक्ति गा. १२३३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy