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________________ 124 / साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य विद्वज्जन उसका अवश्य शुद्धिकरण करें। इस प्रकार लेखक ने अपनी विनम्रता भी प्रकट की है। इस ग्रन्थ में उल्लेखित विधियों के नाम इस प्रकार है १. रात्रिक प्रतिक्रमण विधि २. प्राभातकालीन प्रतिलेखना विधि २.१ सामान्य प्रतिलेखन विधि २.२ अंग प्रतिलेखन विधि २.३ उपधि प्रतिलेखन विधि २.४ स्थापनाचार्य प्रतिलेखन विधि २.५ वसति (स्थान) प्रमार्जन विधि ३. उपयोग विधि ( आहार पानी को ग्रहण करने से पूर्व करने योग्य आवश्यक विधि ) ४. उघाड़ा पोरिसी (प्रथम प्रहर में करने योग्य) विधि ५. पात्र प्रतिलेखन विधि ६. भिक्षा के लिए भ्रमण करने एवं प्राप्त भिक्षा की आलोचना विधि ७. प्रत्याख्यान पूर्ण करने की विधि ८. आहार करने की विधि ६. स्थंडिल ( मलमूत्र विसर्जन ) के लिए गमन करने की विधि १०. सायंकालीन प्रतिलेखन विधि ११. स्थंडिलभूमि प्रतिलेखन विधि १२. स्थंडिल सम्बन्धी मांडला विधि १३. गोचरी में लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण विधि १४. दैवसिक प्रतिक्रमण विधि १५. रात्रि मे संस्तारक पर शयन करने की विधि १६. पाक्षिक प्रतिक्रमणादि विधि १७. मण्डलीस्थापना विधि १८. दैवसिक प्रतिक्रमण विधि १८. रात्रिक प्रतिक्रमण करने का समय २०. ' चत्तारिअट्ठदसदोय' का पाठ बोलते समय मुख को चारों दिशाओं में न करके मन में ही स्मरण करने का निर्देश। २१. आवश्यकादि क्रिया करते समय सूत्रों को संपदा युक्त एवं शुद्ध पाठ पूर्वक बोलने का निर्देश । २२. छहमासिक तप का चिन्तन करने की विधि २३. मुखवस्त्रिका को प्रतिलेखित करने की विधि २४. शरीर को प्रतिलेखित करने की विधि २५. उत्कृष्ट चैत्यवंदन करने की विधि २६. साधु एवं श्रावक के लिए चैत्यवन्दन करने की सामाचारी २७. अकारण गुरु आदि से पृथक् प्रतिक्रमण किया हो, तो उस दोष की शुद्धि करने सम्बन्धी विधि इत्यादि । ग्रन्थ समाप्ति के अनन्तर प्रस्तुत प्रकाशित संस्करण में परिशिष्ट भी दिया गया है। उसमें कायोत्सर्ग के १८ दोष, गोचरी के ४२ दोष, आहार करने के कारण, आहार न करने के कारण एवं तपागच्छीय दैवसिक - रात्रिक अतिचार आदि वर्णित है। प्रस्तुत ग्रन्थ की विषयवस्तु के आधार पर यह सिद्ध होता है कि रचनाकार क्षमाकल्याणउपाध्याय अपने समय के गीतार्थ विद्वान् और आगम प्रकरणादि के गंभीर अभ्यासी थे। आपने संस्कृत व मरु - गुर्जर भाषा में विद्वत्तापूर्ण अनेक मौलिक ग्रन्थ लिखे हैं साथ ही अनेक ग्रन्थों पर टीकाओं का निर्माण भी किया है, जिनमें तर्कसंग्रहफक्कि - का, गौतमीयकाव्यकृति, खरतरगच्छपट्टावली, आत्मप्रबोध, श्रावकविधि प्रकाश, यशोधर - चरित्र, सूक्तिरत्नावली स्वोपज्ञवृत्ति, प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, अंबडचरित्र, विज्ञानचन्द्रिक, चातुर्मासिकव्याख्यान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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