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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 115 जिनवल्लभगणि सिद्धांत - कर्म - गुणस्थान आदि विषयों के मर्मज्ञ विद्वान थे । अन्य गच्छो के धुरन्धर और प्रौढ़ विद्वानों ने इनकी विभिन्न कृतियों पर टीका रचकर इनको प्रामाणिक विद्वान माना है। ऐसे टीकाकारों में धनेश्वराचार्य, हरिभद्राचार्य, मलयगिरि, यशोदेवसूरि आदि अन्यगच्छीय एवं खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि, जिनपालो - पाध्याय, रामदेवगण, साधुसोमोपाध्याय, उपा. समयसुन्दर आदि अनेकों विद्वानों ने इनके सैद्धान्तिक साहित्य, औपदेशिक साहित्य और स्तोत्रसाहित्य पर टीकायें रचकर इनकी सार्वभौमिकता को स्वीकार किया है। टीकाएँ – इस ग्रन्थ पर 'सुबोधा' नाम की २८०० श्लोक परिमाण एक टीका श्रीचन्द्र - सूरि के शिष्य, यशोदेव ने वि. सं. ११७६ में लिखी है। अजितप्रभसूरि द्वारा भी एक टीका रची गई है। श्री चन्द्रसूरि ने वि.सं. ११७८ में एक वृत्ति लिखी है। उदयसिंह ने 'दीपिका' नाम की ७०३ श्लोक परिमाण एक अन्य टीका वि.सं. १२६५ में लिखी है। ये श्रीप्रभ के शिष्य माणिक्यप्रभ के प्रशिष्य थे। यह टीका उपर्युक्त 'सुबोध' के आधार पर रची गई है। इसके अतिरिक्त अन्य एक अज्ञातकर्तृक दीपिका नाम की टीका भी है। इस मूल कृति पर रत्नशेखरसूरि के शिष्य संवेगदेवगण ने वि.सं. १५१३ में एक बालाबोध लिखा है । प्रश्नव्याकरणसूत्र प्रश्नव्याकरण दसवाँ अंग आगम है। यह आगम प्राकृत गद्य में है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन और एक सौ इकहत्तर सूत्र हैं । प्राचीन आगम सूत्रकृतांगसूत्र के अनुसार इसमें ऋषिभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित दस अध्ययनों के होने का उल्लेख है। समवायांग और नन्दिसूत्र के निर्देशानुसार इसमें निमित्तशास्त्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं, किन्तु प्रश्नव्याकरणसूत्र के वर्तमान संस्करण में जिन दस अध्ययनों की चर्चा मिलती है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कालक्रम में प्रश्नव्याकरणसूत्र की विषयवस्तु में परिवर्तन होता रहा है। वर्तमान संस्करण की विषयवस्तु के आधार पर प्रस्तुत आगम का अवलोकन करते हैं तो कुछैक विधि-विधान और उसके संकेत इसमें दृष्टिगत होते हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध जो आश्रवद्वार से सम्बन्धित है उसमें हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह का विस्तृत विवेचन किया गया है और यह भी बताया गया है कि इन आश्रवद्वारों का सेवन करने से जीव किस प्रकार की दुर्गति को प्राप्त होता है। दूसरा श्रुतस्कन्ध जो संवरद्वार से सम्बन्धित है इसमें विधि-विधान के कुछ अंश अवश्य मिलते हैं जैसे कि - अहिंसा महाव्रत की चर्चा करते हुए आहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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