SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 92/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य इस कृति में नौ अध्याय है। पहले अध्याय में धर्म के स्वरूप का निरूपण है। दूसरे अध्याय में सम्यक्त्व की उत्पत्ति आदि का कथन है। तीसरे अधिकार का नाम 'ज्ञानाराधन' है। इसमें ज्ञान के भेदों का वर्णन करते हुए श्रुतज्ञान की आराधना को परम्परा से मुक्ति का कारण कहा है। चतुर्थ अध्याय में पाँच महाव्रत, तीन गुप्ति और पाँच समिति का विस्तृत वर्णन है। इसका नाम 'चारित्राराधन' है। पाँचवे अध्याय का नाम 'पिण्डशुद्धि' है। यहाँ पिण्ड का अर्थ भोजन है। दिगम्बर परम्परा में साधु की आहारविधि में लगने वाले छियालीस दोष बताये गये हैं। सोलह उद्गमदोष हैं, सोलह उत्पादन दोष हैं और चौदह अन्य दोष हैं। इन सब दोषों से रहित भोजन ही साधु के लिए ग्रहण करने योग्य होता है। उन्हीं का विस्तृत वर्णन इस अध्याय में है। छठे अध्याय का नाम 'मार्गमहोद्योग' है। इसमें मुनि जीवन के आवश्यक अंग दसधर्म, बारहभावना एंव बाईस परीषहों का वर्णन है। सातवें अध्याय का नाम 'तप आराधना' है इसमें बारह तपों का वर्णन है। आठवें अध्याय का नाम 'आवश्यक नियुक्ति' है। यह अध्याय विधि-विधान से सम्बद्ध है। इसमें साधु के लिए षड़ावश्यक विधि का निरूपण हुआ है। उसमें वन्दना की विधि, सामायिक आदि करने की विधि, प्रतिक्रमण की विधि, कृतिकर्म के प्रयोग की विधि आदि प्रमुख हैं। इसके साथ ही इसमें आवश्यक विधि का फल, आवश्यक के भेद, सामायिक के प्रकार, प्रत्याख्यान के प्रकार, नित्य-नैमित्तिक क्रियाकाण्ड से पारम्परिक मोक्ष, कृतिकर्म के योग्य काल, आसन, स्थान, मुद्रा, आवर्त और शिरोनति का लक्षण, इत्यादि का विवेचन हुआ है। साथ ही साधु को तीन बार नित्य देववन्दन करना चाहिए, वन्दन में वन्दनामुद्रा, सामायिक और स्तव में मुक्ताशुक्तिमुद्रा, कायोत्सर्ग में जिनमुद्रा करनी चाहिए, कायोत्सर्ग और वन्दना के समय बत्तीस दोषों का परिहार करना चाहिए इसका भी इसमें उल्लेख किया गया है। साधु के लिए यह अधिकार बहुत ही महत्वपूर्ण है। नवम अध्याय का नाम 'नित्य-नैमित्तिक क्रिया' है। इस अध्याय के प्रारम्भ में नित्यक्रिया के प्रयोग की विधि बतलायी गयी है। उसमें स्वाध्याय कब, किस प्रकार प्रारम्भ करना चाहिए और कब किस प्रकार समाप्त करना चाहिए। साथ ही त्रैकालिक देववन्दन की विधि कही गई है। देववन्दन आदि क्रियाओं को करने का फल कहा गया है। कार्यात्सर्ग में ध्यान करने की विधि भी कही गई है। आगे नमस्कारमन्त्र के जप की विधि और भेद कहे गये हैं। पुनः प्रातःकालीन देववन्दन के पश्चात् आचार्य आदि को वन्दन करने की विधि कही गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy