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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 75 से युक्त होना, १५. प्रतिदिन धर्म का श्रवण करना, १६. अर्जीण होने पर भोजन का त्याग करना, १७. भूख लगने पर प्रकृति के अनुकूल भोजन करना १८. धर्म, अर्थ एवं काम का उचित सेवन करना, १६. अतिथि, साधु एवं दीनजन की यथायोग्य सेवा करना, २० कदाग्रह से मुक्त रहना, २१. गुण में पक्षपाती होना, २२. प्रतिषिद्ध देश एवं काल की क्रिया का त्याग करना, २३. स्व-पर के बलाबल का विचार करना, २३, व्रतधारी एवं ज्ञानी वृद्धजनों की सेवा करना, २५. पोष्यजनों का यथायोग्य पोषण करना, २६. दीर्घदर्शी होना २७. विशेषज्ञ होना, २८. कृतज्ञ होना, २६. लोकप्रिय होना, ३०. लज्जाशील होना, ३१. कृपालु होना, ३२. सौम्यस्वभावी होना, ३३. परोपकारी होना, ३४ अन्तरंग छः शत्रुओं का परिहार करने के लिए उद्यत होना और ३५. जितेन्द्रिय होना । ,, ग्रन्थकार की दो कृतियाँ और प्राप्त होती हैं १. कुमारपाल प्रबन्ध और २. धर्मपरीक्षा । सम्यक्तव मूल बारह व्रत और आश्रव रोधिका संवर पोषिका ( उपधान पौषध मार्गदर्शिका) यह पुस्तक गुजराती गद्य में निबद्ध है' तथा देवनागरी लिपि में प्रकाशित है। इसका संपादन मुनि जिनप्रभविजयजी ने किया है। इसमें दो प्रकार की विधियाँ वर्णित है प्रथम तो उपधान की मूल विधि का तथा उसकी आवश्यक उपविधियों का सम्यक् निरूपण किया गया है और दूसरे में सम्यक्त्व सहित बारहव्रत ग्रहण करने की विधि प्रतिपादित है। इसमें प्रत्येक व्रत का स्वरूप, व्रत की मर्यादा, व्रत के अतिचार एवं उसके उपनियमों की मर्यादा वर्णित है। इस प्रकार यह कृति बारह व्रतग्रहण करने की विधि का व्यवस्थित रूप से विवेचन करती है। उक्त दोनों प्रकार की ये विधियाँ उन-उन तपाराधकों एवं व्रतधारियों के लिए पढ़ने योग्य हैं। सड्ढदिणकिच्च (श्राद्धदिनकृत्य ) 'श्राद्धदिनकृत्य' नामक यह कृति श्रुतधर आचार्य की है। इस ग्रन्थ के कर्त्ता का नाम ज्ञात नहीं हुआ है। इस कृति पर अवचूरि भी लिखी गई है। उससे भी कर्त्ता का नाम ज्ञात नहीं हो पाया है, क्योंकि अक्चूरि भी अज्ञातकर्तृक है। यह प्राकृत पद्य में निबद्ध है। इसमें कुल ३४३ पद्य हैं। प्रारम्भ की एक गाथा मंगलाचरण रूप कही गई है अन्त में प्रशस्ति रूप नौ गाथाएँ उल्लिखित हैं। इस कृति में १६ द्वारों का निर्देश है जो श्रावक के दिनकृत्य विधि-विधानों से सम्बन्धित है। १ यह पुस्तक वि.सं. २०३२ में, 'श्री जैन उपाश्रय संघ, जूना डीसा' से प्रकाशित हुई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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