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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 73 पहनने की विधि, मंदिर में प्रवेश करने की विधि, प्रदक्षिणा विधि, द्रव्यपूजा विधि, भावपूजा विधि, इक्कीस प्रकार की पूजा की विधि, स्नात्रपूजा करने की विधि, गुरुवंदन विधि, द्वादशावर्त्तवन्दन की विधि, द्रव्यउपार्जन विधि, सुपात्रदान विधि, भोजन करने की विधि इत्यादि विधियों का सम्यक् प्रतिपादन किया गया है। द्वितीय रात्रिसंबंधीकृत्यविधिद्वार इस दूसरे द्वार में प्रतिक्रमणविधि, स्वाध्यायविधि, निद्राविधि, सागारीसंथाराविधि आदि का सोद्देश्य प्रतिपादन किया गया है। - तृतीय पर्वसंबंधीकृत्यविधिद्वार - स द्वार में पर्व दिन की चर्चा, तिथिसंबंधी विचार और अष्टप्रहरी पौषध की विधि का उल्लेख है। चतुर्थ चातुर्माससंबंधी कृत्यविधिद्वार स द्वार के अन्तर्गत चातुर्मास काल के करणीय एवं अकरणीय कार्यों का उल्लेख कर साथ ही उन कार्यों का शुभाशुभ फल भी बताया गया है। - पंचम संवत्सर (वर्ष) संबंधीकृत्यविधिद्वार इस प्रकरण में मुख्य रूप से श्रावक के उन वार्षिक ग्यारह कर्त्तव्यों का विवेचन हैं जिनका परिपालन श्रावक के द्वारा वर्ष भर में एक बार अवश्य किया जाना चाहिये। वे ग्यारह कर्त्तव्य ये हैं - Jain Education International - १. संघपूजा करना, २ . साधर्मिक भक्ति करना, ३. तीन प्रकार की यात्रा करना-१.रथ यात्रा, २. तीर्थयात्रा, ३. अष्टान्हिका यात्रा । ४. मन्दिर में बड़ी पूजा पढ़ाना, ५. देवद्रव्य की वृद्धि करना, ६. स्नात्रादि पूजा करना, ७. धर्म निमित्त रात्रि जागरण करना, ८ ज्ञानपूजा करना, ६. उद्यापन करना, १०. तीर्थ प्रभावना ( शासन उन्नति) करना, ११. आलोचनाग्रहण करना । षष्टम श्रावकजीवनसंबंधीकृत्यविधि - इस अन्तिम द्वार में श्रावक का रहने योग्य स्थान कैसा हो, कहाँ हो, गृहनिर्माण की विधि इत्यादि की विवेचना की गई है। इसके साथ ही इस द्वार में मानव जीवन को सफल करने के लिए कुछ कृत्य भी बताए गये हैं जैसे मन्दिरबनवाना, प्रतिमाबनवाना, प्रतिष्ठाकरवाना, पुत्रादि को दीक्षा दिलवाना आदि का महोत्सव काल पुस्तक लिखवाना और पौषधशाला बनवाना आदि । इस वृत्ति में श्रावक के इक्कीस गुण तथा मूर्ख के सौ लक्षण आदि विविध बातें आती है। भोजन की विधि व्यवहार शास्त्र के अनुसार पच्चीस संस्कृत श्लोकों में दी गई है और उसके अनन्तर आगम आदि में से अवतरण दिये गये हैं। इस 'विधिकौमुदी' टीका में निम्नलिखित व्यक्तियों के दृष्टान्त ( कथानक) आते हैं गाँव का कुलपुत्र, सुरसुन्दरकुमार की पाँच पत्नियाँ, शिवकुमार, बरगद की चील ( राजकुमारी), अम्बड् परिव्राजक के सातसौ शिष्य, दशार्णभद्र, चित्रकार, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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