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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 71 श्रावकधर्म खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि के शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरि ने यह ग्रन्थ रचा है। इसका रचनाकाल १३१३ है । इस पर खरतरगच्छ के अभयतिलकगणि, लक्ष्मीतिलकगणि ने वि.सं. १३१७ में १५१३१ श्लोक परिमाण टीका रची है। श्रावकसामाचारी इस नाम की पाँच कृतियाँ हैं। इनमें श्रावक - जीवन की आवश्यक विधियों का उल्लेख हुआ है। इनमें से एक कृति देवगुप्ताचार्य की है, इस पर १२०० श्लोक परिमाण स्वोपज्ञवृत्ति है। दूसरी कृति १२०० श्लोक परिमाण हरिप्रभसूरि की है, तीसरी कृति जिनचन्द्र की है, चौथी कृति शिवप्रभ के शिष्य श्री तिलकाचार्य की २० गाथाओं में है, पाँचवी अज्ञातकर्तृक रचना है। इस पर दो टीकाएँ एक टीका १२०० श्लोक परिमाण देवगुप्ताचार्य की है। दूसरी टीका अज्ञातकर्तृक है। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में गुरूपरम्परा का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि तपाविरूद को प्राप्त करने वाले जगत्चन्द्रसूरि हुए, उनके पट्ट पर देवसुन्दरसूरि हुये, उनके पट्ट पर, बिराजमन होने वाले उनके शिष्य सोमसुन्दरसूरि हुये तथा उनके शिष्य भुवनसुन्दरसूरि हुए। श्रावकविधि यह कृति प्राकृत की पद्यात्मक शैली में है।' इसकी रचना सरस्वती कण्ठाभरणादि कविराज श्रीधनपाल ने की है। इसमें कुल २४ पद्य हैं। इस कृति में श्रावक की दिनकृत्य विधि का प्रतिपादन है। इसमें बताया गया है कि श्रावक को प्रातः काल से लेकर शयन पर्यन्त क्या - क्या और किस-किस प्रकार के धार्मिक कृत्य करने चाहिये, बारहव्रत का अनुपालन किस प्रकार किया जाना चाहिये, पाँच तिथियों में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन क्यों करना चाहिये इत्यादि श्रावक के अनेक विषयों का भी इसमें वर्णन हैं। इस कृति के अन्त में कहा है कि जो भव्यात्मा शास्त्र निर्दिष्ट श्रावकविधि का सम्यक् परिपालन करता है वह संसार समुद्र को पार करता हुआ अव्याबाध निर्वाण सुख को प्राप्त करता है । यह कृति महोपाध्याय यशोविजयजी कृत 'ज्ञानसार' के साथ संकलित है। यह प्रताकार रूप में है। इसका संपादन मोहनविजयगणि के शिष्य मुनिप्रतापविजयजी ने किया है। 9 इस कृति का प्रकाशन 'श्री मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, बडोदरा' से वी. सं. २४४७ में हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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