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________________ 70 / श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य श्रावकधर्मविधि इसकी रचना धनपाल कवि ने २२ पद्यों में की है। श्रावकधर्मकुलक इसकी रचना श्री मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य श्रीदेवसूरि ने ५७ पद्यों में की है। श्रावकधर्मविधिप्रकरण अनेक ग्रन्थों के प्रणेता आचार्य हरिभद्र विरचित श्रावक धर्मविधिप्रकरण नामक यह अमूल्य ग्रन्थ जैन महाराष्ट्री प्राकृत में है । यह १२० गाथाओं से गुम्फित है। परम्परागत धारणा के अनुसार इसका रचनाकाल लगभग छठीं शताब्दीं का उत्तरार्ध माना जाता है। किन्तु विद्वत्वर्ग हरिभद्र का काल आठवीं शताब्दि मानता है उस अपेक्षा से यह आठवीं शती की रचना भी मानी जाती है । इस ग्रन्थ के नामोल्लेख से यह स्वतः सुस्पष्ट होता हैं कि इस कृति में श्रावक जीवन के आधारभूत विधि-विधानों का विवेचन किया गया है। प्रमुखतः इस ग्रन्थ में सम्यक्त्व व्रतग्रहण करने की विधि विस्तार से वर्णित है इसके साथ ही इसमें बारह व्रतग्रहण की विधि दी गई है। उस सन्दर्भ में आचार्य हरिभद्र ने व्रत का स्वरूप, व्रतों के अतिचार, व्रतों के आगार ( अपवाद या छूट), व्रत सन्दर्भ में उठने वाली शंकाओं को उपस्थित करके उनका समाधान भी दिया है। इतना ही नहीं इस ग्रन्थ के अन्त में निम्नलिखित विधियों से सम्बन्धित कुछ चर्चाएँ भी की गई हैं। उन चर्चित विधियों के नाम ये हैं १. श्रावक की दिनचर्या विधि, २. श्रावक जिनदर्शन विधि, ३. श्रावक द्वारा प्रत्याख्यान ग्रहण करने की विधि, ४. श्रावक की व्यापार विधि, ५. श्रावक की भोजन विधि, ६. सुपात्रादि को दान देने की विधि, ७. श्रावक की रात्रिचर्या विधि, ८. श्रावक की संलेखना विधि | ग्रन्थ के प्रारम्भ में 9. व्रत ग्रहण करने के अधिकारी, २. जिज्ञासु के लक्षण, ३. समर्थ के लक्षण, ४. बहुमान के लक्षण, ५. विधि में प्रवृत्त होने वाले के लक्षण इत्यादि का उल्लेख किया गया है, वे इस ग्रन्थ की उपादेयता को निःसंदेह सिद्ध करते हैं। - वृत्ति - इस ग्रन्थ पर श्रीमानदेवसूरि द्वारा १५२६ श्लोक परिमाणवली संस्कृत वृत्ति रची गई है। ' १ इस ग्रन्थ का सटीका गुजराती भावानुवाद पू. राजशेखरसूरि द्वारा किया गया है। यह कृति ‘श्री वेलजी देपार हरणिया जैन धार्मिक ट्रस्ट, जामनगर' से प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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