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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 54 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि न मैं स्वयं करूंगा, न करवाऊंगा और न करने वालों का अनुमोदन करूंगा । हे भगवन् ! पूर्वकृत पापों से निवृत्त होता हूँ। आपकी साक्षी से उनकी गर्हा-निन्दा करता हूँ और पूर्वकृत पापों के प्रति जो ममत्ववृत्ति है, उसका भी पूर्ण रूप से परित्याग करता हूँ । विशिष्टार्थ - भदंत भदंत शब्द गुरु के प्रति पूज्यताभाव का वाचक है। देशविरतिरूप सामायिक को श्रावक बारह व्रतों के मध्यगत शिक्षाव्रत के रूप में मुहूर्तमात्र के लिए हृदय में धारण करते हैं । देशविरति-सामायिक उच्चारने का दण्डक निम्न हैं " करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावनियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।" देशविरति-दण्डक की व्याख्या 'करोमि भदंत सामायिकं सावद्यं योगं प्रत्याख्यामि' गृहस्थधर्म की अपेक्षा से गृहस्थ हिंसक प्रवृत्तियों का सम्पूर्ण रूप से त्याग नहीं करता, अर्थात् जीवनपर्यन्त उसके परिपालन का नियम नहीं लेता, अपितु देशविरति ग्रहण करने के कारण एक निश्चित काल तक ही उन सावद्ययोगों का त्याग करता हैं, जबकि साधु तो जीवनपर्यन्त सामायिक में रहकर सर्वविरतिव्रत का ग्रहण करते हैं । गृहस्थ तो हमेशा सावधकारी प्रवृत्तियों में निरत रहता है । नियम ग्रहण करने से वह आंशिक समय के लिए ही पापकारी प्रवृत्तियों से रहित होता है । “द्विविधं - त्रिविधेन " का तात्पर्य मन-वचन एवं काया से न करूंगा न करवाऊंगा। अनुज्ञा से पूर्ण निवृत्ति गृहस्थों के लिए पूर्णतः सम्भव नहीं होती है। शेष दण्डक की व्याख्या पूर्वानुसार ही है । सामायिकव्रत में साधु जीवनपर्यन्त आरंभ (हिंसा) के त्यागी तथा संयम का पालन करने वाले होते हैं । श्रावक सामायिककाल में प्रतिक्रमण, स्वाध्याय एवं परमेष्ठी मंत्र का जप करते हैं, जिन्हें प्रतिक्रमण - विधि के अन्तर्गत कहा जाएगा। सामायिक का फल सामायिक का फल तो सर्व पापों को हरने वाला है, अतः वह महाफलदायक है । जैसा कि आगम में कहा Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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