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आचारदिनकर (खण्ड-४)
53 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अड़तीसवाँ उदय आवश्यक-विधि
अब आवश्यक विधि बताते हैं -
आचारों के आख्यापन के लिए साधु एवं श्रावकवर्ग के हित की इच्छा से मनोहर आवश्यक-विधि को संक्षेप में कहूँगा। आवश्यक छः होते हैं - १. सामायिक २. चतुर्विंशतिस्तव ३. वंदन ४. प्रतिक्रमण ५. कायोत्सर्ग ६. प्रत्याख्यान।
___इन सब की व्याख्या आदि इसी क्रम से करेंगे। सर्वप्रथम सामायिक-आवश्यक की व्याख्या करते हैं। जिसके माध्यम से मणि एवं तृण में, सोने और लोहे में, कुरूपता और सुरूपता में समत्व की प्राप्ति होती हो, अर्थात् समभाव की प्राप्ति हो, उसे सामायिक कहते हैं। सामायिक के दो प्रकार हैं - १. सर्वविरति और २. देशविरति।
सर्वविरतिरूप सामायिक में पंचमहाव्रतों एवं छठवें रात्रिभोजनत्यागवत का ग्रहण किया जाता है। पंच भावनाओं तथा पंचसमिति एवं त्रिगुप्तिरूप अष्टप्रवचन माता से युक्त सर्वसावद्ययोग के त्यागपूर्वक पंचमहाव्रत का धर्मवीरों द्वारा आमरणकाल तक ग्रहण कर उनका निरतिचारपूर्वक पालन करना सर्वविरति-सामायिक है। सर्वविरति-सामायिक-व्रत उच्चारने का दण्डक, अर्थात् सामायिक ग्रहण करने का पाठ निम्नांकित है -
"करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करन्तंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।" भावार्थ -
हे भगवन् ! मैं सामायिक-व्रत ग्रहण करता हूँ। अतः सावध प्रवृत्तियों का, अर्थात् पापकर्म वाले व्यापारों का त्याग करता हूँ। जीवनपर्यन्त मन, वचन और कायारूप - इन तीनों योगों से पापकर्म
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