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आचारदिनकर (खण्ड-४) 52 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि छ? (निरंतर दो उपवास) तप एवं षट्मासगुरु का अर्थ तेला (निरंतर तीन उपवास) तप एवं पंचकल्याण का अर्थ दस उपवास बताया है।
आचार्य वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के उभयधर्म-स्तम्भ में प्रायश्चित्त-कीर्तन नामक यह सैंतीसवाँ उदय समाप्त होता है।
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