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आचारदिनकर (खण्ड-४)
49 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि आता है। ब्राह्मण वैश्य का आहार ग्रहण करता है, तो उसे उपवास का प्रायश्चित्त आता है तथा शूद्र का आहार ग्रहण करने पर पाँच उपवास का प्रायश्चित्त आता है। शिल्पी का आहार ग्रहण करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार क्षत्रिय यदि शूद्र का अन्न खाए, तो उसकी शुद्धि भी उसी प्रकार होती है। वैश्य यदि शूद्र एवं कारु (शिल्पी) का अन्न खाए, तो आयम्बिल करने से शुद्ध होता है। शूद्र यदि कारु का अन्न खाए, तो पूर्वार्द्ध करने से शुद्ध होता है। म्लेच्छ से संस्पर्शित भोजन का सेवन करे, तो उपवास करने से शुद्धि होती है। अन्य गोत्र के व्यक्ति के यहाँ सूतक का अन्न खाने पर भी उपवास करने से ही शुद्धि होती है। ब्राह्मण, स्त्री, भ्रूण, गाय एवं साधु का घात करने वाले के यहाँ का अन्न खाने पर विद्वानों ने उसकी शुद्धि के लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त बताया है। आहार के मध्य में प्राणियों के शरीर के अंग (जीवांग) दिखाई देने पर भी वह आहार उसी प्रकार कर ले, तो दूसरे दिन एकासना करने से उस पाप की शुद्धि होती है। इसी प्रकार भोजन के समय कुत्ता, बिल्ली, रजस्वलास्त्री, चर्म, अस्थि एवं अन्य जाति के लोगों का स्पर्श होने पर भी उसकी शुद्धि जीवांग की शुद्धि के समान ही करे - तप के योग्य प्रायश्चित्त की यह विधि यहाँ समाप्त होती है।
यतियों के सत्कार्यों का विरोध करे, पापकार्यों में उनकी सहायता करे, उनसे यौन सम्बन्ध स्थापित करे, अर्थात् संभोग करे, प्रमादवश साधु की निंदा करे, शक्ति होने पर शरणागत जीवों की रक्षा न करे, निंदनीय कर्म का सेवन करे, गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करे तथा माता-पिता को संतापित करे, तीर्थयात्रा से बीच में ही लौट आए, मस्करी हेतु शुद्धधर्म का उपहास करे, दूसरों पर क्रोध करे - इत्यादि दोषों की शुद्धि शक्ति अनुसार दान देने से होती है। झूठी साक्षी दे, तो उस पाप की विशुद्धि के लिए विप्रों को दान दे एवं गुरुओं को आहारादि प्रदान करे। - दान के योग्य द्रव्य-प्रायश्चित्त की यह विधि यहाँ समाप्त होती है।
____ म्लेच्छदेश में उत्पन्न म्लेच्छस्त्री का परिग्रहण करे, म्लेच्छ बन्दीजनों के साथ निवास करे, प्रमाद के कारण अभक्ष वस्तुओं का
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