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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 46 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि देखकर प्रायश्चित्त की यह श्रेष्ठ विधि कही गई है। सूक्ष्मरूप से भी व्रत का भंग होने पर, अर्थात् पापरूप अतिचारों के लगने पर जो परमात्मा के तत्त्व को जानते हैं, ऐसे मुनियों को शास्त्र देखकर प्रायश्चित्त देना चाहिए। मोह या स्वमति के गर्व से मैंने कुछ कम या अधिक कहा हो, तो मेरा वह पाप मिथ्या दुष्कृत हो । कदाचित् यहाँ कोई प्रायश्चित्त-विधि बताने से रह गई हो, तो उसे महासागररूप जिन - आगम से देखें। प्रायश्चित्त अधिकार में प्रकीर्ण- प्रायश्चित्त एवं भाव - प्रायश्चित्तों की यह विधि समाप्त होती है । अब स्नान के योग्य प्रायश्चित्त बताते हैं अभी तक सभी पापों के लिए भाव - प्रायश्चित्त की विधि बताई गई। अब बहिर्लेपरूप द्रव्यशुद्धि की विधि बताते हैं। आचारज्ञों द्वारा बर्हिलेप के १. स्पर्श २. कृत्य ३. भोजन ४. दुर्नय एवं ५. ज्ञातिमिश्रण - ये पाँच प्रकार बताए गए हैं I स्पर्श कृत्य भोजन दुर्नय विमिश्रण - - Jain Education International चांडाल, शूद्र आदि का स्पर्श करने पर दुष्कर्म करने पर भोजन करने पर | 1 इन पाँच प्रकार के दोषों के प्रायश्चित्त के रूप में पाँच प्रकार की प्रायश्चित्त - विधि बताते हैं । जिस प्रकार भावदोषों के प्रायश्चित्त के रूप में दस प्रकार की प्रायश्चित्त - विधि बताई गई है, उसी प्रकार बाहूय ( द्रव्य) दोषों की शुद्धि के लिए पाँच प्रकार के प्रायश्चित्त बताए गए हैं। बाहूयशुद्धि हेतु किए जाने वाले ये पाँच प्रायश्चित्त निम्न पाँच प्रकार के हैं १. स्नान के योग्य २. करने के योग्य ३. तप के योग्य ४. दान के योग्य ५. विशोधन के योग्य । सभी प्रकार के सुगन्धित पदार्थों से युक्त जल से नख से शिखा पर्यन्त स्नान करते हैं, पंचगव्य तथा देवता के स्नात्रजल से आचमन करते हैं । इसी प्रकार तीर्थों के जल एवं गुरु के चरणों से - दूषित आहार करने पर किसी की निन्दा आदि करने पर विवाह समारोह आदि में अन्य जाति के साथ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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