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________________ 45 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अब प्रकीर्णकरूप से दोनों की प्रायश्चित्त - विधि बताते हैं मुनि यदि लोच की पीड़ा से चलायमान हो जाए, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है । बाईस परीषहों को सहन न कर पाए, तो भी उपवास का प्रायश्चित्त आता है । अध्यापन कराते समय श्रावक एवं शिष्य आदि को मारने पर इन दोषों की शुद्धि प्रतिक्रमण से होती है। मुमुक्षु यदि सद्गुरु की आज्ञा का विधिपूर्वक पालन न करे, अर्थात् उनकी आज्ञा का उल्लंघन करे, तो उसे निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है । अविधिपूर्वक गुरु के पास खड़े रहकर वन्दन करे, उनसे बातचीत करे एवं उन्हें निर्देश दे, तो दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । रोग आदि में चिकित्सा कराने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है । जिनसे पाँच महाव्रतों का भंग होता हो ऐसे कार्य प्राणान्त का संकट आने पर भी साधुओं के लिए किसी भी रूप में करणीय नहीं हैं। कामभाव के बिना भी स्त्रियों के साथ अत्यधिक संलाप (वार्तालाप) करने पर, राजद्वार पर जाने पर, अन्य तैर्थिकों से वाद-विवाद करने पर, कौतुकवश उन्हें देखने पर तथा मिथ्याशास्त्र का अध्ययन करने पर इन सब दोषों के लिए मुनियों को आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। पार्श्वस्थ एवं अवसन्न भिक्षु के साथ रहने पर या उनके जैसा आचरण करने पर साधुओं को मूल - प्रायश्चित्त आता है, कुछ लोग इसके लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त बताते हैं । श्रावकों द्वारा लज्जादि के कारण अन्य परम्पराओं के देवताओं तथा साधुओं को नमस्कार करने पर उसकी शुद्धि जिनपूजा द्वारा होती है । बलात्कारपूर्वक सर्वव्रतों का भंग करने पर मुनियों एवं गृहस्थों को दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । श्राविका को प्रसूति होने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। साधुओं की शुश्रूषा करते समय उनकी काया का स्पर्श करने पर तथा शुश्रूषा के पूर्ण होने पर भी देह का स्पर्श करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । जिस प्रकार साधु एवं साध्वियों की प्रायश्चित्त - विधि समान है, उसी प्रकार श्रावक एवं श्राविकाओं की भी प्रायश्चित्त-विधि समान ही बताई गई है । सागर सम गहन महानिशीथ निशीथ दोनों जीतकल्प ( जीतकल्प एवं लघुजीतकल्प/ श्राद्धजीतकल्प) तथा प्रायश्चित्त सम्बन्धी अन्य शास्त्रों को For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org आचारदिनकर (खण्ड-४) Jain Education International
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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