________________
आचारदिनकर (खण्ड-४) 43 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
आचार्य को वन्दन करने पर निर्विकृति का पुनः इसी प्रकार शरीर के पृष्ठ भाग की तरफ से दो बार वन्दन करने पर पूर्वार्द्ध, तीन बार वन्दन करने पर एकासन तथा चार बार वन्दन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। विधिपूर्वक गुरु को वन्दन न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। कायोत्सर्ग न करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। विधिपूर्वक कायोत्सर्ग न करने पर पूर्वार्द्ध का तथा कायोत्सर्ग नहीं करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। सामायिक में दूसरों को सामायिक पलाए, अर्थात् पूर्ण कराए या समय से पहले सामायिक पूर्ण करे, तो आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। प्रतिक्रमण न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। आलस्य के कारण बैठे-बैठे प्रतिक्रमण करे, तो आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। - गृहस्थ के लिए आवश्यकक्रिया में लगे दोषों की यह प्रायश्चित्त-विधि बताई गई है।
मतान्तर से स्थूलमृषावादविरमण-व्रत का भंग करने पर जघन्यतः आयम्बिल, मध्यमतः उपवास एवं उत्कृष्टतः सौ उपवास का प्रायश्चित्त आता है। स्थूल अदत्तादान-विरमण-व्रत का भंग करने पर जघन्यतः निर्विकृति, मध्यमतः बेले तथा जानबूझकर दूसरों की वस्तु ग्रहण करने पर तथा अज्ञात अवस्था में दूसरों की वस्तु ग्रहण करने पर उत्कृष्टतः अर्थात् दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मैथुनव्रत का भंग करने पर गृहस्थ को मूल-प्रायश्चित्त आता है। परस्त्री के साथ संभोग करने पर, नीचकुल की परस्त्री का संभोग करने पर तथा गुप्त रूप से परस्त्री के साथ संभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अज्ञानवश मैथुनव्रत का भंग होने पर पाँच उपवास या दस उपवास का तथा जानबूझकर इस व्रत का भंग करने पर मूल-प्रायश्चित्त आता है। अज्ञानतावश स्थूलपरिग्रहविरमण-व्रत का अतिक्रमण होने पर विद्वानों ने उसके लिए उपवास का प्रायश्चित्त बताया है। दसों दिशाओं में जाने-आने के परिमाणरूप दिग्परिमाणव्रत का भंग होने पर तथा इसी प्रकार अज्ञानतावश तथा अभिमानपूर्वक सभी व्रतों का भंग करने पर प्रत्येक व्रत के लिए पाँच उपवास या दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। यह प्रायश्चित्त-विधि श्रावकों के लिए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org