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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 39 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पोरसी एवं ग्रन्थि सहित प्रत्याख्यान का भंग होने की दशा में प्रायश्चित्त हेतु कुछ लोग एक सौ आठ नमस्कार-मंत्र का जाप करने के लिए भी कहते हैं। अब वीर्यातिचार की प्रायश्चित्त-विधि बताते हैं - अत्यधिक सामर्थ्य होने पर भी परमात्मा की पूजा, स्वाध्याय, तप, दान आदि उत्साहपूर्वक न किया हो, शक्ति होने पर भी आवश्यकक्रियारूप कायोत्सर्ग आदि अल्पमात्रा में भी न किया हो, तो प्रत्येक दोष के लिए एकासन का प्रायश्चित्त आता है। कपटपूर्वक तप एवं ज्ञान की आराधना करे, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव से शक्ति होने पर भी किंचित्, अर्थात् अतिसरल अभिग्रह करे, अभिग्रह आदि न करे तथा अभिग्रह लेकर भी उसे तोड़े, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। नियम होने पर भी परमात्मा की पूजा, वन्दना आदि न करे, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। अंधकार में गुरु के चरणों का पैर आदि से स्पर्श होने पर तथा गुरु की अन्य कोई सूक्ष्म आशातना होने पर पूर्वार्द्ध का, मध्यम आशातना होने पर एकासन का तथा उत्कृष्ट आशातना होने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। अस्थापित (अप्रतिष्ठित) स्थापनाचार्य का पैर से संस्पर्श होने पर निर्विकृति तथा स्थापित (प्रतिष्ठित) स्थापनाचार्य का पैर से संस्पर्श होने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है (?)। स्थापनाचार्य नीचे जमीन पर गिर जाए या टूट जाए और उसकी क्रिया न करे, तो क्रमशः एकासन, निर्विकृति एवं पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। व्रतियों को आसन न देने पर, मुखवस्त्रिका आदि का संग्रह करने पर, उनको पीने के लिए पानी एवं आहार हेतु भोजन का दान न करने पर क्रमशः नीवि, नीवि, एकासन एवं आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। नियम होने पर भी साधुओं को वंदन (नमस्कार) न करे, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। गुरुद्रव्य का गुरु के वस्त्र का तथा साधारण द्रव्य का अपने हेतु उपयोग करने पर विनयपूर्वक उससे अधिक मात्रा में वापस करें (लौटाएं)। देवद्रव्य, जल, आहार का परिभोग करने पर, उससे अधिक द्रव्य का देवकार्य में व्यय करें। देवद्रव्य का भक्षण करने पर जघन्यतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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