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आचारदिनकर (खण्ड-४) _38 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि उनको कष्ट देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। एक द्वीन्द्रिय जीव का भी घात करे, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है, दो द्वीन्द्रिय जीवों का विनाश करने पर दो उपवास तथा तीन द्वीन्द्रिय जीवों का विनाश करने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। संक्षेप में जितने द्वीन्द्रिय जीवों का घात करे, उतनी ही संख्या में उपवास का प्रायश्चित्त आता है। त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय जीवों का घात करने पर भी इसी प्रकार का प्रायश्चित्त आता है। असंख्य द्वीन्द्रिय जीवों का घात करने पर दो बेले का, असंख्य त्रीन्द्रिय जीवों का घात करने पर तीन बेले का तथा असंख्य चतुरिन्द्रिय जीवों का घात करने पर चार बेले का प्रायश्चित्त आता है। पंचेन्द्रिय जीवों का स्पर्श करने पर एकासन का, उन्हें अल्प संतापित करने पर आयम्बिल का, अत्यधिक संतापित करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। प्रमादवश एक पंचेन्द्रिय जीव का घात होने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार प्रमादवश जितने पंचेन्द्रिय जीवों का घात करे, उतने ही बेले का प्रायश्चित्त आता है। अहंकारपूर्वक एक पंचेन्द्रिय जीव का घात करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार दर्पपूर्वक जितनी संख्या में पंचेन्द्रिय जीवों का घात करे, उतनी ही मात्रा में दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
अब तप के अतिचारों की प्रायश्चित्त-विधि बताते हैं - ___ कोई तप करे और उसमें यदि कोई विघ्न करे, उसकी निंदा करे, तो निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। इन दोनों अतिचारों का प्रत्याख्यान न करने पर, अर्थात् इनकी प्रतिज्ञा के अभाव में यति को उपवास का प्रायश्चित्त आता है। श्रावक को इनका प्रत्याख्यान न करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। नवकारसी, पोरसी, पूर्वार्द्ध, एकासना, निर्विकृति, आयम्बिल एवं उपवास का प्रत्याख्यान भंग होने पर पुनः उसी प्रत्याख्यान का प्रायश्चित्त आता है। वमन आदि के कारण प्रत्याख्यान का भंग होने पर एकासना का या निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। ग्रन्थिसहित या मुष्टिसहित प्रत्याख्यान का भंग होने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। प्रतिदिन नवकारसी आदि के प्रत्याख्यान नहीं करने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। नवकारसी,
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