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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) 37 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि है, किन्तु उसके किसी सूत्रविशेष की आशातना करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । दर्शनाचार के शंकादि पाँच अतिचारों का देशतः (आंशिक) सेवन करने पर प्रत्येक अतिचार के लिए आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है तथा उनका सर्वतः ( पूर्णतया ) सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । संयम का त्याग करने की भावना रखने पर, मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा करने पर, पार्श्वस्थ आदि के साथ वात्सल्यभाव रखने पर इन दोषों का आंशिक रूप से सेवन करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है तथा सम्पूर्ण रूप से इन दोषों का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । उन्हें आंशिकरूप से असंयमी कहने पर आयम्बिल का तथा पूर्णरूप से असंयमी कहने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । यति के प्रवचन श्लाघनीय होने पर भी उसकी प्रशंसा न करे, साधर्मिकवात्सल्य न करे तथा सामर्थ्य होने पर भी शासन की प्रभावना न करे - इनमें अंशतः दोष लगने पर प्रत्येक दोष के लिए एक आयम्बिल का तथा समग्रतः दोष लगने पर प्रत्येक के लिए एक-एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है । सामान्यरूप से अरिहंत परमात्मा के बिम्ब की आशातना करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है, किन्तु परमात्मा के बिम्ब पर अपवित्र लेप लगाने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है । धूपदानी, कुम्पिका आदि तथा स्वयं के वस्त्रादि जिनबिम्ब के लगने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। विधिपूर्वक प्रमार्जन न करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। नीचे जमीन पर बिम्ब गिरे, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। कितने ही लोग प्रतिमा की जघन्य आशातना में पूर्वार्द्ध, मध्यम आशातना में आयम्बिल तथा उत्कृष्ट आशातना में उपवास का प्रायश्चित्त बताते हैं । अब चारित्राचार सम्बन्धी अतिचारों के प्रायश्चित्त बताते हैं बिना किसी प्रयोजन के अपूकाय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय का स्पर्श करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है । इन्हें अल्प पीड़ा देने पर पूर्वार्द्ध तथा अत्यधिक पीड़ा देने पर उपवास का तथा उन पर उपद्रव करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है अनंतकाय एवं विकलेन्द्रिय जीवों का स्पर्श करने पर पूर्वार्द्ध का तथा Jain Education International . For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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