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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 36 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि का प्रायश्चित्त आता है। वन्दन-आवश्यक न करने पर भी यही प्रायश्चित्त आता है। सचित्तजल का सेवन (पान) करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। नैषेधिकी आदि सामाचारी का पालन न करने पर, उत्तरासंग का त्याग करने पर, डण्डे की प्रतिलेखना न करने पर, प्रमार्जन किए बिना ही उसे रखने पर, हाथ एवं वसति को प्रमार्जित किए बिना ही प्रमार्जित सर्व उपकरणों को तथा उपधि, शय्या एवं आसन को करने या रखने पर, चटाई, पाट आदि तथा वस्त्र-आच्छादन आदि की दोनों समय प्रतिलेखना न करने पर, प्रतिदिन दिन का एक प्रहर शेष रहने पर भाण्ड (पात्र) आदि का संपुटीकरण (उन्हें एक के अन्दर एक रखना) तथा उनकी एवं पाट आदि की प्रतिलेखना न करने पर - इन सर्व दोषों में निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। यह सब कथन जीतकल्प के अनसार कहा गया है। यह यतिजनों की प्रायश्चित्त-विधि कही गई है। लघुजीतकल्प-विधि के अनुसार यहाँ यतिजनों की प्रायश्चित्त-विधि संपूर्ण होती है। अब व्यवहार-जीतकल्प के अनुसार यतिजनों एवं श्रावकों की प्रायश्चित्त-विधि बताते हैं - इसमें सर्वप्रथम श्रावकों के ज्ञानाचार में लगने वाले दोषों की प्रायश्चित्त-विधि बताते हैं। ज्ञानाचार का भंग करने वाले अकाल, अविनय आदि आठ अतिचारों के लगने पर प्रत्येक अतिचार की शुद्धि हेतु एकासन का प्रायश्चित्त बताया गया है। ज्ञानी एवं ज्ञान के साधनों के प्रति उपेक्षाभाव रखने या उनकी आशातना करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। अध्ययन करते समय तथा व्याख्यान के समय कोई विघ्न उत्पन्न करने पर भी एकासन का प्रायश्चित्त आता है। पुस्तक आदि नीचे जमीन पर रखे, कांख (बगल) में रखे, खराब हाथ से उठाए या उस पर अपवित्र वस्तु का लेप करे - तो इन दोषों के लगने पर प्रत्येक के लिए आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। ज्ञान की जघन्य आशातना करने पर पूर्वार्द्ध का, मध्यम आशातना करने पर एकासन का तथा उत्कृष्ट आशातना करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। कुछ लोग इसके लिए उपवास का प्रायश्चित्त भी बताते हैं। सामान्यतः आगम की आशातना करने पर आयम्बिल आता For Private & Personal Use Only करने वाले अ आतचारों के लगने हेतु एकासन का Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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