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आचारदिनकर ( खण्ड - ४ )
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
पाक्षिक-तप से भ्रष्ट होने पर, अर्थात् पाक्षिक हेतु बताया गया तप न करने पर क्षुल्लक को निर्विकृति, यति को एकासन, स्थविर को पूर्वार्द्ध, उपाध्याय को आयम्बिल एवं आचार्य को उपवास का प्रायश्चित्त आता है। निर्दिष्ट चातुर्मासिक-तप न करने पर क्षुल्लक को पूर्वार्द्ध, वृद्धमुनि को एकासन, सामान्यमुनि को आयम्बिल, उपाध्याय को उपवास एवं आचार्य को बेले का प्रायश्चित्त आता है । वार्षिक - तप न करने पर क्षुल्लक को एकासन, स्थविर को आयम्बिल, सामान्यमुनि को उपवास, उपाध्याय को बेले का एवं आचार्य को तेले का प्रायश्चित्त आता है।
अब ज्ञानातिचार की प्रायश्चित्त - विधि बताते हैं
अनागाढ़ योगों में योग का एवं उसमें उद्देशक, अध्ययन, श्रुतस्कन्ध एवं अंगसूत्र की वाचना हेतु की जाने वाली विधि का भंग होने पर, अथवा उसमें अतिचार लगने पर क्रमशः एकासन, पूर्वार्द्ध, एकासन एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है। आगाढ़ योगों में उद्देश, अध्ययन, श्रुतस्कन्ध एवं अंग की वाचना - विधि का भंग होने पर, अर्थात उसमें अतिचार लगने पर क्रमशः पूर्वार्द्ध, एकासन, आयम्बिल एवं बेले का प्रायश्चित्त आता है। अयोग्य व्यक्ति को, अथवा मूर्ख या वक्रजड़ को सूत्र की वाचना देने पर क्रमशः आयम्बिल एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है। योग्य पात्र के मिलने पर उसे सूत्र एवं अर्थ की वाचना न दे, तो भी उपवास का प्रायश्चित्त आता है । तपाचार में ग्रंथियुक्त प्रत्याख्यान का भंग हो जाए, मंत्रयुक्त प्रत्याख्यान का भंग हो जाए, पोरसी का प्रत्याख्यान भंग हो जाए, चौविहार प्रत्याख्यान का भंग हो जाए, अन्य कोई नियम भंग हो जाए, पाणाहार आदि का प्रत्याख्यान भंग हो जाए, प्रतिक्रमण अकाल में किया हो, स्वाध्याय - प्रस्थापना के समय कायोत्सर्ग आदि न किया हो, गमनागमन सम्बन्धी दोषों का प्रतिक्रमण नहीं किया हो, इसी प्रकार आवश्यक क्रिया न की हो तथा कायोत्सर्ग नहीं किया हो इन सब दोषों के लिए आयम्बिल का प्रायश्चित्त बताया गया है। आवश्यकक्रिया में कायोत्सर्ग न करे, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। तीन आवश्यक न करे, तो एकासने का तथा सर्व आवश्यकक्रिया न करे, तो उपवास
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