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आचारदिनकर (खण्ड-४) 34 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण कहीं गिर जाए और पुनः प्राप्त हो जाए, किन्तु प्रतिलेखना करने से रह जाए, तो निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण खो जाने पर पुनः न मिले, तो उसके लिए मनीषियों ने बेले का प्रायश्चित्त बताया है। मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना न करने पर एकासने का प्रायश्चित्त आता है। रजोहरण की प्रतिलेखना न करने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। संध्या के समय प्रत्याख्यान न करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। प्रत्याख्यान करने के बाद पानी पी ले, अर्थात् प्रत्याख्यान का भंग कर दे, तो उस प्रत्याख्यान के समतुल्य बताए गए नमस्कार-मंत्रों की संख्या का जप करना चाहिए। प्रत्याख्यान करने के बाद भूल जाए कि मैंने प्रत्याख्यान किया था या नहीं, तो उसके लिए एकासन का प्रायश्चित्त आता है। संध्या के समय चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान न किया हो तथा प्रभातकाल में नवकारसी, पोरसी आदि का प्रत्याख्यान न किया हो या प्रत्याख्यान करने पर भी वह प्रत्याख्यान टूट गया हो, तो उसके लिए पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। स्थण्डिलभूमि का प्रतिलेखन न करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। रात्रि में अन्य किसी के द्वारा प्रतिलेखित भूमि पर मलोत्सर्ग करे, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। सर्वपात्रों का भंग करने पर उत्कृष्टतः आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। मांगकर लाई गई सूई के खो जाने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। कुछ लोग इसके लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त बताते हैं। बिना प्रतिलेखन किए द्वार खोले या चटाई बिछाए, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। षट्पदी (नँ आदि) को संस्पर्शित करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। समय पर प्रतिक्रमण न करे, गोचरी का प्रतिक्रमण (आलोचना) न करे, नैषेधिक आदि दसविध सामाचारी का पालन न करे - इन सबके लिए एकासन का प्रायश्चित्त बताया गया है।
वीर्यातिचार सम्बन्धी पाक्षिक आदि में जो करने योग्य तपविधि है, वह तप यथाशक्ति क्षुल्लक आदि के द्वारा किया जाना चाहिए। उन्हें नहीं करने पर जो दोष लगते हैं, उसकी प्रायश्चित्त-विधि बताते
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