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________________ 33 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि है। उपधि कहीं गिर गई हो और पुनः प्राप्त होने पर वह प्रतिलेखन करने से रह गई हो, अर्थात् उपधि की प्रतिलेखना करना भूल गए हों या दूसरों से उस उपधि का प्रतिलेखन करने हेतु कहे, तो जघन्य प्रकार की उपधि के लिए निर्विकृति, मध्यम प्रकार की उपाधि के लिए पूर्वार्द्ध तथा उत्कृष्ट प्रकार की उपधि के लिए एकासन का प्रायश्चित्त आता है। सर्व उपधि कहीं गिर जाए और पुनः प्राप्त हो जाए, किन्तु प्रतिलेखन करने से रह जाए, तो चार सौ बारह नमस्कारमंत्र के जप का प्रायश्चित्त आता है। कदाचित् विस्मृतिवश जघन्य उपधि (मुहँपत्ति, पात्र केसरिका, गुच्छा, पात्रस्थापनक) की प्रतिलेखना रह जाए, तो आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है तथा कोई उसे चुरा ले जाए या धोए, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है । मध्यम उपधि ( पड़ला, पात्रबंध, चोलपट्टक, मात्रक, रजोहरण, रजस्त्राण ) को कोई चुरा ले जाए या धोने ले जाए या धोये तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है । सम्पूर्ण उपधि को चुरा ले जाए तथा आचार्यादिक को निवेदन किए बिना स्वेच्छा से उपधि वगैरह ले ले, तो मुनियों को बेले का प्रायश्चित्त आता है। गुच्छा, पात्रकेसरी, पात्रस्थापनक एवं मुखवस्त्रिका - ये चार जघन्य उपधि हैं। पड़ला, पात्रबन्ध, रजोहरण, चोलपट्ट, रजस्त्राण एवं ये मध्यम उपधि हैं। पात्र, दो सूतीकल्प ( चादर ) तथा एक ऊनीकल्प (कम्बल) ये उत्कृष्ट उपधि हैं । वर्षाकाल के समय सर्व उपधि को धोने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। गुरु को दिखाए बिना आहार करने पर तथा अन्य को देने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। गुरु के रजोहरण तथा मुखवस्त्रिका का प्रमादपूर्वक संस्पर्श (संघट्ट) होने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है, कुछ लोग इसके लिए उपवास का प्रायश्चित्त भी बताते हैं मुखवस्त्रिका कहीं गिर जाने पर मिले या ना मिले, अथवा उसको कोई चुराकर ले जाए, तो आचार्यों ने उसका उत्कृष्ट प्रायश्चित्त उपवास बताया है। यदि रजोहरण कोई चुरा कर ले जाए और पुनः मिले नहीं, तो बेले का प्रायश्चित्त आता है । इसी प्रकार रजोहरण के लिए अट्ठम का प्रायश्चित्त भी बताया गया है । मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण को नष्ट करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार मात्रक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org आचारदिनकर (खण्ड-४ -8) - Jain Education International
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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