________________
आचारदिनकर (खण्ड-४) _32 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि करने पर भी एकासन का प्रायश्चित्त आता है। बादरप्राभृतदोष से दूषित आहार करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। पृथ्वीकाय को पीड़ित करने पर तथा खाने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। हाथ और पैर कीचड़ से लिप्त होने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। अप्काय (जल), तेजस्काय (अग्नि) और वायुकाय से मिश्रित आहार करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है तथा जानबूझकर इनका भक्षण करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। परग्रामाहृतदोष से दूषित आहार ग्रहण करने पर क्रमशः आयम्बिल तथा पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ड) का प्रायश्चित्त आता है। प्रमादपूर्वक, अप्रासुक वन्यउपज (प्रत्येक वनस्पतिकाय), जल एवं अग्नि का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। पश्चात्कर्म से दूषित आहार करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। अन्य मतानुसार एकासन का प्रायश्चित्त भी आता है। सचित्त से पिहित तथा संश्रित आहार का सेवन करने पर उपवास का तथा अल्पदूषित पिण्ड का सेवन करने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। दायक की प्रशंसा करके प्राप्त किए गए आहार का सेवन करने पर सामान्यतया आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है, किंतु उत्कृष्टतः उपवास का प्रायश्चित्त भी आता है। आहार के समय के अतिरिक्त अन्य समय में या आहार करने का समय व्यतीत हो जाने पर आहार करे, तो आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है तथा उस अतिक्रमित आहार का विशेष रूप से परिभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। शय्यातर के पिण्ड का भक्षण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। बरसती हुई वर्षा के समय लाये गए अन्न का आहार करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। गर्मी में आहार का परिष्ठापन करने पर, अर्थात् प्रातःकाल लाए गए आहार को सन्ध्या तक रखने पर तथा वर्षाऋतु में आहार का त्याग करने पर, अर्थात् उसे फैंकने पर क्रमशः पूर्वार्द्ध एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अन्नादि से लिप्त पात्र रखने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। अकाल के समय मल का विसर्जन करने पर, मलोत्सर्ग के पात्र में कृमि होने पर, मल में कृमि होने पर तथा उल्टी होने पर - प्रत्येक के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org