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आचारदिनकर (खण्ड-४) 31 . प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। षंड पुरुष, तिर्यंच और स्त्रियों के साथ मैथुन की अत्यधिक इच्छा होने पर तथा मैथुनयोग्य भाषण करने पर - प्रत्येक के लिए मूल-प्रायश्चित्त आता है। स्त्रियों के स्तन आदि का स्पर्श होने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। स्त्रियों के वस्त्रों का स्पर्श होने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। कुछ लोग इसके प्रायश्चित्त के लिए एक सौ आठ बार नमस्कार-मंत्र का जप भी बताते हैं। अहंकारपूर्वक ब्रह्मचर्यव्रत का खंडन करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। स्वप्न में ब्रह्मचर्य का भंग होने पर नमस्कारमंत्र सहित एक चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग करें। आहार से लिप्त पात्र रखे तथा शुष्क भोजन का संचय करे, तो प्रत्येक के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता है। रात्रि के समय डोरी मुखवस्त्रिका, पात्र तथा तिर्पणी आदि आहार से लिप्त रह जाएं, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। विकृति का संचय करने पर तथा उसका सेवन करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। दिन में आहार लाकर रखें और दिन में ही काल का अतिक्रमण करके खाए, रात्रि में लाए और रात्रि में खाए, रात्रि में लाए और दिन में खाए तथा दिन में लाए
और रात्रि में ही खाए - इस प्रकार के चारों विकल्प में से प्रथम विकल्प में बेले का प्रायश्चित्त आता है तथा शेष तीनों विकल्पों में अट्ठम, अर्थात् तेले का प्रायश्चित्त आता है। शुष्क वस्तु का संचय करने पर पूर्वार्द्ध का तथा आर्द्रित वस्तु का संचय करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। कुछ मुनिजन इसके लिए पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त भी बताते हैं। आधाकर्म-दोष से दूषित आहार करने पर उपवास का तथा पूतिकर्म-दोष से दूषित आहार करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। आत्मक्रीत एवं परक्रीत-दोष से दूषित आहार करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। औद्देशिक-दोष से दूषित आहार करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। शेष दोषों से दूषित आहार करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अल्पकालीन स्थापनादोष से दूषित आहार करने पर उत्कृष्टतः निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। दीर्घकालीन-स्थापनादोष से दूषित आहार करने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। सूक्ष्मप्राभृतिकदोष से दूषित आहार
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